________________
763
अष्टम् अध्ययन, उद्देशक 6 समए इत्तरियं कुज्जा, तं सच्चं सच्चवाई ओए तिन्ने छिन्नकहकहे आईयढे अणाईए चिच्चाण भेउरं कायं संविहूय विरूवरूवे परीसहोवसग्गे अस्सि विस्संभणयाए भेखमणुचिन्ने तत्थावि तस्स काल परियाए जाव अणुगामियं त्तिबेमि॥219॥
छाया-अनुप्रविश्य ग्रामं वा नगरं वा खेटं वा कर्बर्ट वा मंडपं वा पत्तनं वा द्रोणंमुखं वा आकरं वा आश्रमं वा सन्निवेशं वा नैगमं वा राजधानी वा तृणानि याचेत, तृणाणि याचित्वा स तानि आदाय एकान्तं अपक्रामेत् एकान्तं अपक्रम्य अल्पांडे अल्प्राणिनि अल्पबीजे अल्पहरिते अल्पावश्याये अल्पोदके अल्पत्तिंगपनकोदकमृत्तिकामर्कटसन्तानके प्रत्युपेक्ष्य 2 प्रमृज्य 2 तृणानि संस्तीर्य अत्रापि समये इत्वरं कुर्यात् तत् सत्यं सत्यवादी ओजः तीर्णः छिन्नकथंकथः अतीतार्थः अनातीतः त्यक्त्वा भिदुरं कायं संविधूय विरूपरूपान् परीषहोपसर्गान् अस्मिन् विस्रम्भणतया भैरव मनुचीर्णः तत्रापि तस्य कालपर्यायः यावत् आनुगामिकं इति ब्रवीमि। ___पदार्थ-गाम वा-ग्राम में। वा-यह सर्वत्र पक्षान्तर का द्योतक है। नगरं वा-नगर में। खेडं वा-खेट में। कडंड-कर्वट में। मंडवं-मंडप में। पत्तनं वापत्तन में। दोणमुहं वा-द्रोणमुख में। आगरं वा-आकर में-खान में। आसमंवाआश्रम में। सन्निवेसंवा-सन्निवेश में। नेगमं वा-नैगम में। रायहाणिं वा-राजधानी में। अणुपविसित्ता-प्रवेश करके। तणाइं-तृणों की। जाइज्जा-याचना करें। तणाई जाइत्ता-तृणों को याचना करके। से-वह भिक्षु। तमायाए-उन तृणों को लेकर। एगंत मवक्कमिज्जा-एकान्त गृह या गुफादि में चला जाए। एगंतमवक्कमित्ता-वहां एकान्त में जाकर। अप्पंडे-जिस स्थान में अल्प अंडे हैं। (यहां पर अल्प शब्द अभावार्थक है) अतः अंडे रहित। अप्पपाणे-अल्प प्राणी। अप्पबीएअल्प बीज। अप्पहरिए-अल्पहरी। अप्पोसे-अल्प ओस । अप्पोदए-अल्प उदकपानी। अप्पुत्तिंग-अल्प पिपीलिका-चींटियां। पणग-उल्ली विशेष। दग-पानी। मट्टिय-सचित्त मिट्टी। मक्कड़ा संताणए-मर्कट संत्तानक-मकड़ी का जाला - आदि से रहित स्थानों में। पडिलेहिय 2-प्रतिलेखना करे। पमज्जिय 2-प्रमार्जन करे और प्रमार्जन करके। तणाई-तृणों को। संथरिज्जा-बिछावे। तणाई संथरित्ता