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________________ अष्टम अध्ययन, उद्देशक 5 755 भी समानधर्मी मुनि को वैयावृत्य-सेवा के लिए नहीं कहूंगा। यदि वह अपने कर्मों की निर्जरा के लिए सेवा करेगा तो उसे मैं स्वीकार करूंगा और इसी तरह मैं भी यथा समय उसकी सेवा करूंगा। इस तरह वह अभिग्रहनिष्ठ मुनि अपनी प्रतिज्ञा का पालन करे। कठिन-से-कठिन परिस्थिति में भी प्रतिज्ञा को भंग न करे। सेवा करने के संबन्ध में चार भंग-विकल्प बताए गए हैं। कुछ मुनि ऐसी प्रतिज्ञा करते हैं कि मैं अपने समान धर्मी अन्य मुनियों के लिए आहार लाऊंगा और उनका लाया हुआ आहार ग्रहण भी करूंगा। कुछ मुनि ऐसा नियम करते हैं कि मैं अन्य मुनियों को आहार ला दूंगा, परन्तु उनका लाया हुआ स्वीकार नहीं करूंगा। कुछ मुनि ऐसा संकल्प करते हैं कि मैं दूसरों का लाया हुआ ले लूंगा, परन्तु उन्हें लाकर नहीं दूंगा। कुछ ऐसा नियम करते हैं कि मैं न तो अन्य मुनि को आहार लाकर दूंगा और न अन्य का लाया हुआ आहार स्वीकार ही करूंगा। ___ भक्त परिज्ञा अनशन द्वारा पंडितमरण को प्राप्त करने वाले भिक्षु के लिए बतायी गयी है कि वह कम-से-कम 6 महीने तक, मध्यम 4 वर्ष और उत्कृष्ट 12 वर्ष तक तप करे। इस तरह ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप की साधना से कर्मों की निर्जरा करके साधक अपनी आत्मा का विकास करता है। इसलिए इस तरह से प्राप्त होने वाली मृत्यु को सुखकारी, हितकारी एवं कल्याणकारी कहा है। इससे स्पष्ट होता है कि तपस्या से पाप मल नष्ट होता है और पाप मल के नाश होने से अन्तःकरण शुद्ध होता है और शुद्ध हृदय वाला व्यक्ति ही समाधिमरण को प्राप्त करता है। - निष्कर्ष यह निकला कि प्रत्येक मुनि को अपनी ली हुई प्रतिज्ञा का दृढ़ता से पालन करते हुए भक्त परिज्ञा अनशन के द्वारा समाधि मरण को प्राप्त करना चाहिए। त्तिबेमि की व्याख्या पूर्ववत समझें। ॥ पंचम उद्देशक समाप्त ॥
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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