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अष्टम अध्ययन, उद्देशक 4
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"वैसे ही वस्त्र को। धारिज्जा-धारण करे, किन्तु। नो धोइज्जा-उसे प्रक्षालित न करे। नो धोयरत्ताइं वत्थाई धारिज्जा-और जो वस्त्र प्रक्षालित करके रंगा हुआ है, उसे भी धारण न करे। अपलिओवमाणे गामंतरेसु-ग्रामादि में वस्त्र को गुप्त रखता हुआ-छिपा कर न चले। ओमचेलिए-अभिग्रहधारी मुनि अवमचेलक होता है, अर्थात् परिमाण एवं मूल्य की अपेक्षा से वह स्वल्प वस्त्र रखता है। खलु-अवधारण अर्थ में है। एयं-यह। वत्थधारिस्स-वस्त्रधारी मुनि की। सामग्गियं-सामग्री है। - मूलार्थ-जो अभिग्रहधारी मुनि एक पात्र और तीन वस्त्रों से युक्त है। शीतादि के लगने पर उसके मन में यह विचार उत्पन्न नहीं होता है कि मैं चौथे वस्त्र की याचना करूंगा, यदि उसके पास तीन वस्त्रों से कम हों तो वह निर्दोष वस्त्र की याचना करे और याचना करने पर उसे जैसा वस्त्र मिले वैसा ही धारण करे, किन्तु उसको प्रक्षालित न करे और न धोकर रंगे हुए वस्त्र को धारण करे। वह ग्रामादि में विचरते समय अपने पास के वस्त्र को छिपाकर न रखे। वह वस्त्रधारी मुनि परिमाण के स्वल्प एवं थोड़े मूल्य वाला वस्त्र रखने के कारण अवमचेलक-अल्प वस्त्र वाला भी कहलाता है। यह वस्त्रधारी मुनि की सामग्री भी सदाचार है। हिन्दी-विवेचन ___ प्रस्तुत सूत्र अभिग्रहनिष्ठ या जिनकल्प की भूमिका पर स्थित साधु के विषय में है। इसमें बताया गया है कि जिस मुनि ने तीन वस्त्र और एक पात्र रखने की प्रतिज्ञा की है, वह मुनि शीतादि का परीषह उत्पन्न होने पर भी चौथे वस्त्र को स्वीकार करने की इच्छा न करे। वह अपनी प्रतिज्ञा का दृढ़ता से पालन करने के लिए समभाव पूर्वक परीषह को सहन करे, परन्तु अपनी प्रतिज्ञा एवं मर्यादा से अधिक वस्त्र संग्रह करने की भावना न रखे। यदि उसके पास अपनी की हुई प्रतिज्ञा से कम वस्त्र हैं, तो वह दूसरा वस्त्र ले सकता है। उस समय उसे जैसा वस्त्र उपलब्ध हो, उसका उसी रूप में उपयोग करे। न उसे पानी आदि से साफ करे और न उसे रंगकर काम में ले। वह गांव आदि में जाते समय उस वस्त्र को छिपाकर भी न रखे। उक्त मुनि के पास अल्प मूल्य के थोड़े वस्त्र होने के कारण सूत्रकार ने उसे अवमचेलक-अल्प वस्त्रवाला कहा है।
वृत्तिकार ने पात्र शब्द से पात्र के साथ उसके लिए आवश्यक अन्य उपकरणों