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________________ 734 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध का ज्ञाता है, अवसर का ज्ञाता है, विनय का ज्ञाता है तथा स्वमत और परमत का ज्ञाता है, परिग्रह में ममत्व नहीं रखता है और नियत समय पर क्रियानुष्ठान करने वाला है, वह साधक कषायों की प्रतिज्ञा से रहित और राग-द्वेष का छेदन करने वाला है और वह निश्चित रूप से संयम-साधना में संलग्न रहता है। हिन्दी-विवेचन साधना का क्षेत्र परीषहों का क्षेत्र है। साधु वृत्ति में परीषहों का उत्पन्न होना आश्चर्य जनक नहीं है, अपितु परीषहों का उत्पन्न न होना आश्चर्य का कारण हो सकता है। अतः साधक परीषहों के उत्पन्न होने पर दया भाव का परित्याग नहीं करता है। वह जीवों की दया एवं रक्षा करने में सदा संलग्न रहता है। दया संयम का मूल है, इसलिए यहां सूत्रकार ने दया शब्द का प्रयोग किया है। क्योंकि, दयाहीन व्यक्ति संयम का परिपालन नहीं कर सकता। इसलिए प्राणान्त कष्ट उपस्थित होने पर भी साधक दयाभाव का परित्याग नहीं करता है। ऐसे संयम का पालन वही कर सकता है, जो कर्म शास्त्र का परिज्ञाता है और संयम विधि का पूर्ण ज्ञाता है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि मुनि को कर्म बन्ध के कारण एवं उसके क्षय करने के साधन का परिज्ञान होना चाहिए और यह परिज्ञान आगमों के अध्ययन, स्वाध्याय एवं चिन्तन से ही हो सकता है। स्वाध्याय एवं चिन्तन-मनन में संलग्न रहने वाला साधक ही उपयुक्त समय एवं आहार आदि की मात्रा-परिमाण का ज्ञाता हो सकता है। वह परिग्रह में ममत्व न रखते हुए शुद्ध संयम का पालन कर सकता है। अतः मुनि को निष्ठा पूर्वकं स्वाध्याय एवं चिन्तन में संलग्न रहना चाहिए और परीषहों के उत्पन्न होने पर भी दया भाव का त्याग नहीं करना चाहिए। इससे संयम में निष्ठा बढ़ती है और उसकी साधना में तेजस्विता आती है। इस . संबन्ध में उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं 1. यहां पर–“संनिहाण सत्थस्सखेयन्ने” के वृत्तिकार ने ऊपर बतलाये गए दोनों अर्थ इस प्रकार किये हैं-(सम्यनिधीयते नरकादिगतिषु येन तत्सन्निधानं कर्म तस्य स्वरूपनिरूपकं शास्त्रं तस्य खेदज्ञो-निपुणः, यदिवा सन्निधानस्य कर्मणः शस्त्रं संयमः सन्निधान- शस्त्रं तस्यखेदज्ञः-सम्यक् संयमस्यवेत्ता") इत्यादि।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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