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________________ अष्टम अध्ययन, उद्देशक 2 723 स्वीकार करते हैं। अतः उनकी वृत्ति को देखकर कोई जैन मुनि को भी निमन्त्रण दे, तो मुनि उसे स्वीकार न करे। वह अपनी साधु वृत्ति से उसे परिचित कराकर अपनी निर्दोष साधना में संलग्न रहे। श्मशान आदि में ठहरने के पाठ को वृत्तिकार ने जिनकल्पी एवं प्रतिमाधारी मुनि के लिए बताया है, स्थविर कल्पी के लिए नहीं। परन्तु, वृत्तिकार का कथन उचित प्रतीत नहीं होता है। क्योंकि, उत्तराध्ययन सूत्र में सभी साधुओं के लिए श्मशान आदि में ठहरने का उल्लेख मिलता है। कोई भी साधक आत्मचिन्तन के लिए ऐसे स्थान में ठहर सकता है। निषिद्या परीषह का वर्णन करते समय भी श्मशान आदि शून्य स्थान में ठहरने का सभी साधुओं के लिए उल्लेख किया गया है। .. ' इससे यह स्पष्ट होता है कि उपर्युक्त निर्दोष स्थानों में स्थित साधु सदा निर्दोष वृत्ति से आहार-पानी आदि स्वीकार करके शुद्ध संयम का पालन करे। यदि कोई गृहस्थ स्नेह एवं भक्ति वश सदोष वस्तु तैयार कर दे तो साधु उसे स्वीकार न करे। .. — वह उसका किस तरह निषेध करे, इसे बताते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्-से भिक्खू परिक्कमिज्ज वा जाव हुरत्था वा कहिँचि विहरमाणां तं भिक्खु उवसंकमित्तु गाहावई आयगयाए पेहाए असणं वा 4 वत्थं वा 4 जाव आहट्ट चेएइ आवसहं वा समुस्सिणाई भिक्खू परिघासेउं, तं च भिक्खू जाणिज्जा सहसम्मइयाए परवागरणेणं अन्नेसिं वा सुच्चा-अयं खलु गाहावई मम अट्ठाए असणं वा 4 वत्थं वा 4 1. गच्छवासिनस्तत्र स्थानादिकं न कल्पते, प्रमादस्खलितादौ व्यन्तरायु पद्रवात् तथा जिनकल्पार्थं . सत्वभावनां भावयतोऽपि न पितृवनमध्ये निवासोऽनुज्ञातः, प्रतिमाप्रतिपन्नस्य तु यत्रैव सूर्योऽस्तमुपयाति तत्रैव स्थानं, जिनकल्पस्य वा तदपेक्षया श्मशान सूत्रम्।-आचाराङ्गवृत्ति । 2. सुसाणे सुन्नागारे वा, रुक्ख मूले वा इक्कओ। पइरिक्के पर कडे वा, वासं तत्थाभिरोयए॥ . -उतराध्ययन, 35,6 3. सुसाणे सुनागारे वा रुक्ख मूले वा एगओ। अकुक्कुओ निसीएज्जा नय वित्तासए परं॥ तत्थ से चिट्ठमाणस्स उवसग्गाभि धारए। संकाभीओ न गच्छेज्जा, उठ्ठिता अन्नमासणं॥ -उत्तराध्ययन, 2,20-21
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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