________________
अष्टम अध्ययन, उद्देशक 1
713 'विवेको व्याख्यातः ग्रामे वा, अथवा अरण्ये वा, नैवग्रामे, नैवाऽरण्ये धर्ममाजानीत प्रवेदितं माहनेन मतिमता यामास्त्रयः उदाहृताः येषु इमे आर्याः संबुध्यमानाः समुत्थिताः ये निवृताः पापेषु कर्मसु अनिदानास्ते व्याख्याताः। ___ पदार्थ-से-वह। जहेयं-जैसे इस स्याद्वाद-अनेकान्तवाद रूप वस्तु का यथार्थ वर्णन करने वाले सिद्धान्त का। भगवया-भगवान महावीर ने। पवेइयं- प्रतिपादन किया है, वे प्रतिपादक कैसे हैं? आसुपन्देण-आशुप्रज्ञा वाले हैं। जाणया- ज्ञानोपयोग से युक्त हैं। पासया-दर्शनोपयोग से संपन्न हैं, अतः एकान्तवादियों का धर्म स्वाख्यात नहीं है। अदुवा-अथवा। वओगोयरस्स-वाणी के विषय को। गुत्ती-गुप्त करना-बोलते समय भाषा समिति का विचार रखना, अर्थात् वाद-विवाद के समय वचन गुप्ति को पूर्ण व्यवस्थित रखना चाहिए, उस महापुरुष ने इस प्रकार का उपदेश दिया है। तिबेमि-इस प्रकार मैं कहता हूं। सव्वत्थ-यह सिद्धान्त सर्वत्र। संमयं-सम्मत है। पावं-अतः मैंने पाप का एवं। तमेव उवाइक्कम्म-उस पाप कर्म का परित्याग कर दिया है। महं-मेरा। एस-यह। विवेगे-विवेके। गामे वा-ग्रामों में। अदुवा-अथवा। रण्णे-जंगल में, सर्वत्र । वियाहिए-कहा गया है। नेव गामे और न ग्रामों में धर्म है। नेव रण्णे-न जंगल में है, किन्तु वह तो विवेक में है। पवेइयंभगवान ने ऐसा प्रतिपादन किया है, अतः । धम्ममायाणह-तुम धर्म को जानो, जो। मइसया-मतिमान। माहणेण-भगवान ने। तिन्नि-तीन । जामा-याम-व्रत विशेष। उदाहिया-कहे हैं। जेसु इमे-इन यामों में। आयरिया-जो आर्य मनुष्य। संबुज्झमाण-बोध को प्राप्त होकर । समुट्ठिया-साधना के लिए उद्यत हुए हैं। जे-जो। णिव्वुया-क्रोधादि को दूर करके शान्त हो गए हैं। पावेहि कम्मेहं-पाप कर्म करने में जो। अणियाणा-निदान से रहित हैं, अर्थात् पापकर्म में जिनकी इच्छा एवं रुचि नहीं है। ते-वे। वियाहिया-मुमुक्षु-मोक्ष मार्ग के योग्य, कहे गए हैं।
मूलार्थ-जैसा कि यह स्याद्वाद रूप सिद्धांत सर्वदर्शी भगवान ने प्रतिपादित किया है, एकान्तवादियों का सिद्धान्त वैसा नहीं है। क्योंकि भगवान भाषा-समिति से युक्त हैं अथवा भगवान ने वाणी के विषय में गुप्ति और भाषा समिति के उपयोग का उपदेश दिया है। तात्पर्य यह है कि वाद-विवाद के समय वचन गुप्ति का पूरा ध्यान रखना चाहिए। तर्क-वितर्क एवं वादियों के प्रवाद को छोड़कर यह कहना उचित एवं