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________________ 712 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध भी है और अनन्त भी है। भगवती सूत्र में बताया गया है कि लोक चार प्रकार का है-द्रव्यलोक, क्षेत्रलोक, काललोक और भावलोक। द्रव्य और क्षेत्र से लोक नित्य है। क्योंकि, द्रव्य का कभी नाश नहीं होता है और क्षेत्र से भी वह सदा 14 राजू परिमाण का रहता है। काल एवं भाव की अपेक्षा से वह अनित्य है। क्योंकि भूतकाल में लोक का जो स्वरूप था, वह वर्तमान में नहीं रहा और जो वर्तमान में है वह भविष्य में नहीं रहेगा, उसकी पर्यायों में प्रति समय परिवर्तन होता रहता है। इसी तरह भाव की अपेक्षा से भी उसमें सदा एकरूपता नहीं रहती है। कभी वर्णादि गुण हीन हो जाते हैं, तो कभी अधिक हो जाते हैं। अतः द्रव्य और क्षेत्र की अपेक्षा लोक नित्य भी है और काल एवं भाव की दृष्टि से अनित्य भी है। इसी प्रकार सादि-अनादि, सान्त-अनन्त आदि प्रश्नों का समाधान भी स्याद्वाद की भाषा में दिया गया है। उसमें किसी प्रकार का विरोध नहीं रहता है, क्योंकि उसमें एकान्तता नहीं है। उसमें किसी एक पक्ष का समर्थन एवं दूसरे का सर्वथा विरोध नहीं मिलता है। उसमें प्रत्येक पदार्थ को समझने की एक अपेक्षा, एक दृष्टि रहती है। वैज्ञानिकों ने भी पदार्थ के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए सापेक्षवाद को स्वीकार किया है। आगमिक भाषा में इसे स्याद्वाद, अनेकान्तवाद या विभज्यवाद कहा है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि एकान्तवाद पदार्थ के यथार्थ स्वरूप को प्रकट करने में समर्थ नहीं है। अतः मुनि को एकान्तवादियों से संपर्क नहीं रखना चाहिए। उन्हें यथार्थ धर्म में श्रद्धा-निष्ठा रखनी चाहिए। कौन-सा धर्म यथार्थ है, इसका उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्-से जहेयं भगवया पवेइयं आसुपन्नेण जाणया पासया अदुवा गुत्ती वओगोयरस्स त्तिबेमि। सव्वत्थ संमयं पावं, तमेव उवाइक्कम्म एस महं विवेगे वियाहिए, गामे वा अदुवा रण्णे, नेव गामे, नेव रण्णे धम्ममायाणह पवेइयं माहणेण मइमया, जामा तिन्नी उदाहिया जेसु इमे आयरिया संबुज्झमाणा समुट्ठिया, जे णिव्वुया पावेहिं कम्मेहिं अणियाणा ते वियाहिया॥197॥ ___ छाया-तद्यथा इदं भगवता प्रवेदितमाशुप्रज्ञन जानता-पश्यता अथवा गुप्तिर्वाग्गोचरस्येति ब्रवीमि, सर्वत्र सम्मतं पापं, तदेवोपातिक्रम्य, एषः मम .
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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