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अष्टम अध्ययन, उद्देशक 1
या बिना खाए ही तुमको हमारे मठ में अवश्य आना चाहिए। भले ही तुम्हें वक्रमार्ग से ही क्यों न आना पड़े, आना अवश्य । यदि विभिन्न धर्म वाला साधु, उपाश्रय में आकर या मार्ग में चलते हुए को इस प्रकार कहता हो या आदरपूर्वक अन्नादि का निमन्त्रण देता हो या सम्मानपूर्वक अन्नादि पदार्थ देना चाहता हो और वैयावृत्यसेवा-शुश्रुषा आदि करने की अभिलाषा रखता हो, तो ऐसी स्थिति में संयमशील मुनि को उसके वचनों का विशेष आदर नहीं करना चाहिए, अर्थात् उसके उक्त प्रस्ताव को किसी भी तरह स्वीकार नहीं करना चाहिए । इस प्रकार मैं कहता हूं । हिन्दी - विवेचन
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पूर्व सूत्र में अपने से असंबद्ध अन्य मत के भिक्षुओं को आहार- पानी आदि देने का निषेध किया था। प्रस्तुत सूत्र में इसी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा गया है कि यदि कोई बौद्ध या अन्य किसी मत का साधु आकर कहे कि हे मुनि! तुम हमारे विहार में चलो। वहां तुम्हें भोजन आदि की सब सुविधा मिलेगी । यदि तुम्हें हमारे यहां का भोजन नहीं करना हो तो तुम भोजन करके आ जाना। भले ही तुम भोजन करके आओ या भूखे ही आओ, जैसे तुम्हारी इच्छा हो, परन्तु हमारे यहां आना अवश्य। इस तरह के वचनों को मुनि आदरपूर्वक श्रवण न करे । इसका तात्पर्य यह है कि वे विभिन्न प्रलोभनों के द्वारा परिचय बढ़ाकर उसे अपने मत में मिलाने का प्रयत्न करते हैं। इसलिए उनके संपर्क से मुनि के आचार एवं विचार में गिरावट आ 'सकती है, वह साधनापथ से भ्रष्ट हो सकता है । अतः उसे उनसे घनिष्ठ परिचय नहीं • बढ़ाना चाहिए और न उनके संपर्क में अधिक आना चाहिए।
प्रस्तुत सूत्र सामान्य रूप से है । श्रुत एवं आचार सम्पन्न विशिष्ट साधक अन्य मत के भिक्षुओं के साथ विचार चर्चा कर सकता है। क्योंकि, उसमें अपनी साधना में दृढ़ रहते हुए अन्य व्यक्ति को सत्य मार्ग बताने की योग्यता है । वह उन्हें भी सही मार्ग पर ला सकता है। अतः विशिष्ट साधक के लिए प्रतिबन्ध नहीं है । परन्तु सामान्य साधक में अभी इतनी योग्यता नहीं है कि वह उन्हें सही मार्ग पर ला सके। अतः उनके लिए यह आवश्यक है कि वह अपने से संबद्ध मुनियों के अतिरिक्त अन्य के साथ संपर्क न बढ़ावे, न उनका आदर-सम्मान करे एवं न उनके स्थान पर ही आए-जाए। वह न उनकी सेवा करे और न उनसे सेवा - शुश्रूषा करावे ।