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________________ अष्टम अध्ययन, उद्देशक 1 एवं आचार से रहित अन्य लिंगी साधुओं से विशेष सम्पर्क नहीं रखना चाहिए। उन्हें आदरपूर्वक आहार आदि भी नहीं देना चाहिए । 705 इसमें एक दृष्टि यह भी है कि जैसे शिथिलाचारी साधु दर्शन एवं वेश से मनोज्ञ और चारित्र से अमनोज्ञ है, उसी प्रकार श्रावक भी सम्यग् दृष्टि-दर्शन से समनोज्ञ और चारित्र एवं वेश से अमनोज्ञ होते हैं और शाक्य, शैव आदि अन्य साधु-संन्यासी दर्शन, चारित्र एवं वेश से अमनोज्ञ हैं । अतः साधु किसके साथ आहरादि का सम्बन्ध रखे और किससे न रखे, यह बड़ी कठिनता है । सम्यग् दृष्टि से लेकर शिथिलाचारी तक मनोज्ञता एवं अमनोज्ञता दोनों ही हैं । यदि शिथिलाचारी के साथ आहार आदि का संबन्ध रखा जा सकता है, तो दर्शन से समनोज्ञ श्रावक के साथ संबन्ध क्यों न रखा जाए? यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है । परन्तु, सबके साथ संबंध रखने पर वह अपनी साधना का भली-भांति परिपालन नहीं कर सकेगा। अतः उसके लिए यही उचित है कि ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र से मनोज्ञ - संपन्न साधु के साथ ही अपना सम्बन्ध रखे, अन्य के साथ नहीं । जब उसका सम्बन्ध रत्नत्रय से सम्पन्न साधुओं के साथ ही है, तो वह प्रत्येक आवश्यक वस्तु अपने एवं अपने से सम्बद्ध साधकों के लिए ही लाएगा और देने वाला दाता भी उनके उपयोग के लिए ही देंगा । अतः उसे अपने एवं अपने साथियों के लिए लाए हुए आहार- पानी आदि पदार्थों को अपने से असम्बद्ध व्यक्तियों को देने का कोई अधिकार नहीं रह जाता है। प्रथम तो उसे उक्त पदार्थ अन्य असम्बद्ध साधु . को देने के लिए गृहस्थ की आज्ञा न होने से चोरी लगती है, उसके तीसरे महाव्रत में दोष लगता है और दूसरा दोष यह आएगा कि उनसे अधिक संपर्क एवं परिचय होने से उसके विशुद्ध दर्शन एवं चारित्र में शिथिलता आ सकती है। इसलिए साधक को अपने से असम्बद्ध स्वलिंगी एवं परलिंगी किस भी साधु को विशेष आदर-सत्कार पूर्वक आहार-पानी आदि नहीं देना चाहिए। यह उत्सर्ग सूत्र है, अपवाद में कभी विशेष परिस्थिति में आहारादि दिया भी जा सकता है'। इसलिए प्रस्तुत सूत्र में आहारादि देने का सर्वथा निषेध न करके आदर-सम्मान पूर्वक देने का निषेध किया गया है। इससे स्पष्ट हो गया कि इस निषेध के पीछे कोई दुर्भावना, संकीर्णता एवं 1. इसके विशेष विवरण द्वितीय श्रुतस्कंध में देखें ।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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