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________________ अष्टम अध्ययन : विमोक्ष प्रथम उद्देशक सप्तम अध्ययन में मोहजन्य परीषहों पर विजय पाने का उपदेश दिया गया है। चूँकि मोहजन्य परीषहों का विजेता ही संयम का भली-भांति परिपालन कर सकता है, वह आचार को शुद्ध रख सकता है, इसलिए प्रस्तुत अध्ययन में आचार एवं त्यागनिष्ठ जीवन का उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं. मूलम्-सेबेमि समणुन्नस्स वा असमणुन्नस्स वा असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा, वत्थं वा, पडिग्गहं वा, कंबलं वा, पायपुञ्छणं वा, नो पादेज्जा, नो निमंतिज्जा, नो कुज्जा वेयावडियं परं आढायमाणे, त्तिबेमि॥194॥ . छाया-सोऽहं ब्रवीमि समनोज्ञस्य वा, असमनोज्ञस्य वा, अशनं वा, पानं वा, खादिमं वा, स्वादिमं वा, वस्त्रं वा, पतद्ग्रह-पात्रं वा, कम्बलं वा, पादपुञ्छनं वा, नो प्रदद्यात, नो निमंत्रयेत, नो कुर्यात् वैयावृत्यं परमादरियमानः इति ब्रवीमि। पदार्थ सेबेमि-हे आर्य! मैं तुम्हें कहता हूं कि। समणुन्नस्स वा-जो दृष्टि और लिंग से सुन्दर हैं, परन्तु चारित्र पालन में जो निकृष्ट है उसको, अथवा। असमणुन्नस-उससे भिन्न शाक्यादि को। वा-का अर्थ उत्तरोत्तर अपेक्षा है। असणं-अशन-चावल, रोटी आदि खाद्य पदार्थ। पाणं वा-द्राक्षादि का पानी। खाइमं वा-बादाम-किसमिस एवं फलादि। साइमं वा-स्वादिम-लवंगादि स्वादिष्ट पदार्थ। वत्थं वा-वस्त्रादि। पडिग्गहं वा-पात्रादि। कंबलं वा-कम्बलादि। पायपुञ्छणं वा-रजोहरणादि। परं आढायमाणे-अत्यधिक आदर पूर्वक। नोपादेज्जा-न देवे। नो निमंतिज्जा-न निमंत्रित-मनुहार करे। नो कुज्जावेयावडियं-न उनकी वैयावृत्य-सेवा शुश्रूषा करे। तिबेमि-इस प्रकार मैं कहता हूँ।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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