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षष्ठ अध्ययन, उद्देशक 5
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प्राणियों के प्रति। सव्वेसिं सत्ताणं-सर्व सत्त्वों के प्रति। सव्वेसिं जीवाणं-सर्व जीवों के प्रति। भिक्खु-भिक्षु-साधु । अणुवीइ-विचारकर, अपने और पर-दूसरे के लिए। धम्ममाइक्खिज्जा-धर्म कथा कहे।
मूलार्थ-गृहों में, गृहान्तरों में, ग्रामों में, ग्रामान्तरों में, नगरों में, नगरान्तरों में, देशों में, देशान्तरों में, ग्रामों और नगरान्तरों में, ग्रामों और जनपदों में, नगरों और जनपदान्तरों में बहुत-से लोग हिंसक-उपद्रव करने वाले होते हैं। अतः वह आगम का ज्ञाता भिक्षु-धीर पुरुष उनके द्वारा दिए गए दुःख एवं कष्ट विशेष को तथा परीषहों के स्पर्श से स्पृष्ट हुए संवेदन को सहन करे और राग-द्वेष से रहित एकाकी होकर, समभाव पूर्वक केवल वीतराग भाव में विचरण करता हुआ, प्राणिजगत पर दयाभाव लाकर, पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण आदि सब दिशाओं में धर्मकथा कहे, धर्म का विभाग करके समझाए। आगम का ज्ञाता मुनि सबको व्रतों का फल सुनाए। जो जीव संयम में सावधान हैं-पुरुषार्थ कर रहे हैं, उनको तथा जो संयम में पुरुषार्थ तो नहीं कर रहे हैं परन्तु धर्म सुनने की इच्छा रखते हैं, उनको भी धर्म कथा सुनाये। आगमों में वर्णित क्षमा, विरति, उपशम, निवृत्ति, शौच, ऋजुता, मार्दव और लघुता आदि धर्म के लक्षणों को, वह विचार पूर्वक एवं स्व-पर-कल्याण के लिए सर्व प्राणियों, सर्व भूतों, सर्व सत्त्वों और सर्व जीवों को सुनाए। हिन्दी-विवेचन ___ संसार में विभिन्न प्रकृतियों के प्राणी हैं। क्योंकि सब प्राणियों के कर्म भिन्न हैं
और कर्मों के अनुसार स्वभाव बनता-बिगड़ता है। कषाय के उदय भाव से जीवन में क्रोध, लोभ आदि की भावना उबुद्ध होती है और क्षायिक भाव के समय क्रोध आदि की प्रवृत्ति नहीं होती है। इससे स्पष्ट है कि अपने कृत कर्म के अनुसार प्राणी संसार में प्रवृत्त होते हैं। कर्म सब प्राणियों के भिन्न हैं, इसलिए उनके स्वभाव एवं कार्य में भी भिन्नता दिखाई देती है। ___ हम देखते हैं कि कुछ मनुष्य दूसरों को परेशान करने एवं दुःख देने में आनन्द अनुभव करते हैं; यहां तक कि वे सन्त-पुरुषों को कष्ट पहुंचाने से भी नहीं चूकते। मुनियों को देखते ही उनके मन में द्वेष की आग प्रज्वलित हो उठती है और