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________________ षष्ठ अध्ययन, उद्देशक 4 689 उद्यत विहारियों के। सह-साथ, बसते हुए भी। असमन्नागए-शिथिल विहारी हो जाते हैं, तथा। नममाणेहि-संयमानुष्ठान में विनयशील साधकों के साथ रहते हुए भी। अनममाणे-नम्रता रहित-निर्दयता और सावद्यानुष्ठान का सेवन करने वाले हो जाते हैं। विरएहि-विरतों-त्यागियों के साथ रहकर भी। अविरए-अविरत हो जाते हैं। दविएहि-मुक्ति जाने योग्य साधकों के साथ रहते हुए भी। अदविए-मुक्ति गमन के अयोग्य हो जाते हैं, इस प्रकार के शिष्यों को। अभिसमिच्चा-जानकर। पंडिए-पंडित । मेहावी-बुद्धिमान-मर्यादाशील। निट्ठियठे-विषय सुख से रहित। 'वीरे-वीर-कर्म-विदारण में समर्थ। आगमेणं-आगम के द्वारा साधना पथ को जानकर। सया-सदा। परक्कमिज्जासि-संयम में पराक्रम करे। त्तिबेमि-इस प्रकार मैं कहता हूँ। मूलार्थ-सुधर्मा स्वामी कहते हैं कि हे जम्बू! कई पुरुष प्रथम संयममार्ग की आराधना में सम्यक् प्रकार से उद्यत होकर पीछे से किस प्रकार उसका परित्याग करके प्राणियों के विनाश में प्रवृत्त हो जाते हैं। वह इस प्रकार कहता है कि हे लोगो! मुझे इन संबन्धी जनों से क्या प्रयोजन है? ऐसा मानकर वह दीक्षित होता है, माता-पिता और सम्बन्धी जनों तथा अन्य प्रकार के परिग्रह को त्यागकर वीर पुरुष की भांति आचरण करते हुए सम्यक् प्रकार से संयमानुष्ठान में प्रवृत्त होकर अहिंसक वृत्ति से व्रतों का परिपालन करने और इन्द्रियों को दमन करने में सदा सावधान रहता है। परन्तु, पीछे से किसी पाप के उदय होने पर दीक्षा को छोड़कर, संयम को त्यागकर वह दीनता को धारण कर लेता है। अपने त्यागे हुए विषय-भोगों को फिर से ग्रहण करने लगता है। गुरु कहते हैं कि हे शिष्य! तू ऐसे पतित पुरुषों को देख, जो कि इन्द्रियजन्य विषय और कषायों के वश में होकर आर्त दुःखी बन गए हैं। वे परीषहों को सहन करने में कायर होने से व्रतों के विध्वंसक बन रहे हैं। वे श्रमण होकर तथा विरत त्यागी बनकर भी यश के स्थान में अपयश को ही प्राप्त करते हैं। वे विनयशील साधकों के साथ रहकर भी अविनयी, विरतों के सहवास में रहकर भी अविरत, उद्यत विहारियों के साथ रहकर भी शिथिल विहारी बन जाते हैं एवं मुक्ति गमन योग्य व्यक्तियों के साथ बसकर भी वे मुक्तिगमन के योग्य नहीं रहते हैं। अतः मेधावी-विचारशील व्यक्ति इनको अच्छी तरह समझ कर वीर पुरुष
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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