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________________ षष्ठ अध्ययन : धुत चतुर्थ उद्देशक तृतीय उद्देशक में उपकरणों में कमी करने का उपदेश दिया गया है। उपकरणों में कमी करने अथवा साधना में सहायक आवश्यक उपकरणों से अधिक न रखने के लिए अनासक्त भाव का होना आवश्यक है। इसके लिए गौरव का त्याग करना अनिवार्य हो जाता है। अतः प्रस्तुत उद्देशक में इसी बात का उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्-एवं ते सिस्सा दिया य राओ य अणुपुव्वेण वाइया तेहिं महावीरेहिं पन्नाणमंतेहिं तेसिमंतिए पन्नाणमुवलब्भ हिच्चा उवसमं फारुसियं समाइयंति, वसित्ता बंभचेरंसि आणं तं नोत्ति मन्नमाणा आघायं तु सुच्चा निसम्म, समणुन्ना जीविस्सामो एगे निक्खमंते असंभवंता विडज्झमाणा कामेहिं गिद्धा अज्झोववन्ना समाहिमाघायमजोसयंता सत्थारमेव फरुसं वयंति॥185॥ छाया-एवंते शिष्या दिवा च रात्रौ चानुपूर्वेण वाचितस्तैर्महावीरैः। प्रज्ञानवद्भिः तेषामन्तिके प्रज्ञानमुपलभ्य हित्वा उपशमं पारुष्यं समाददति, उषित्वा ब्रह्मचर्ये आज्ञां तां नो इति मन्यमानाः आख्यातं तु श्रुत्वा निशम्य समनोज्ञाः जीविष्यामः एके निष्क्रम्य असंभवन्तः विदह्यमानाः कामैगृद्धाः अध्युपपन्नाः समाधिमाख्यातमजोषयन्तः शास्तारमेव परुषं वदन्ति। पदार्थ-एवं-इस प्रकार। ते-वे। सिस्सा-शिष्य। दिया-दिन। य-और। राओ-रात्रि में। य-समुच्चय अर्थ में है। अणुपुव्वेण-अनुक्रम से। तेहिं-उन। महावीरेहि-तीर्थंकर, गणधर आदि। पन्नाणमंतेहिं-प्रज्ञावानों के द्वारा। वाइयापढ़ाए गए हैं। तेसिमंतिए-वे शिष्य आचार्यादि के समीप। पन्नाणमुवलब्भ-विशुद्ध ज्ञान को प्राप्त करके बहुश्रुत बनकर, प्रबल मोह के उदय से पुनः। उवसम-उपशम
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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