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________________ 676 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध संधेमाणे समुट्ठिए, जहा से दीवे असंदीणे एवं से धम्मे आरियपदेसिए, ते अणवकंखमाणा पाणे अणइवाएमाणा जइया मेहाविणो पंडिया, एव तेसिं भगवओ अणुट्ठाणे जहा से दियापोए एवं ते सिस्सा दिया य राओ य अणुपुव्वेण वाइय त्तिबेमि॥184॥ छाया-विरतं भिक्षू रीयमाणं चिररात्रोषितमरतिस्तत्र कि विधारयेत् ? संदधानः समुत्थितः यथा स द्वीपोऽसंदीनः एवं स धर्मः आर्यप्रदेशितः ते अनवकांक्षन्तः प्राणिनोऽनतिपातयन्त यदा (दयिताः) मेधाविनः पंडिता, एवं तेषां भगवतोऽनुष्ठानः यथा स द्विजपोतः एवं ते शिष्याः दिवा च रात्रौ च अनुपूर्वेण वाचिताः इति ब्रवीमि। पदार्थ-रीयंत-संयम मार्ग पर चलते हुए। विरयं-विरत। भिक्खुं-भिक्षु को। चिरराओसियं-जो चिर काल पर्यंत संयम में रहा हुआ है। किं-क्या उसे। तत्थ-संयम के विषय में। अरई-अरति-चिन्ता। विधारए-उत्पन्न हो सकती है? उत्तर-हां, यह कर्म की विचित्रता है, जिसके कारण उसे चिन्ता उत्पन्न हो सकती, तथा नहीं भी हो सकती, जैसे कि। संधेमाणे-जो उत्तरोत्तर संयम स्थान में आत्मा को जोड़ता है, तथा। समुट्ठिए-सम्यक् प्रकार से संयम मार्ग में उपस्थित हुआ है, ऐसे मुनि को अरति किस प्रकार हो सकती है? कदापि नहीं हो सकती, वह मुनि तो। जहा-जैसे। से-वह। दीवे असंदीणे-असंदीन द्वीप जल से सर्वथा रहित होने से डूबते हुए प्राणियों का आश्रयभूत है, इसी प्रकार मुनि भी द्वीप तुल्य-द्वीप के समान अन्य जीवों का रक्षक है। एवं-इसी प्रकार। से-वह। धम्मे-धर्म। आरियपदेसिए-आर्य प्रदेशित-तीर्थंकर प्रणीत होने से द्वीप के समान प्राणियों की रक्षा करने वाला है। ते-वे-धर्म के पालने वाले। अणवकंख-माणा-भोगों को न चाहते हुए तथा। पाणे-प्राणियों की। अणइवायमाणा-हिंसा न करते हुए-उपलक्षण से अन्य महाव्रतों का पालन करते हुए। जइया-सर्व जीवों की रक्षा करने से लोगों को प्रिय हैं अथवा सब जीवों के रक्षक हैं। मेहाविणो-मर्यादा में स्थित रहने से मेधावी हैं। पंडिया-पंडित-पापों से दूर रहने वाले हैं। एवं-इसी प्रकार। तेसिं-उनको। भगवओ-भगवान वर्द्धमान स्वामी के धर्म में। अणुट्ठाणे-अनुष्ठान-अनुस्थान है अथवा जो भगवान के धर्म में स्थिर चित्त नहीं, वे उनको धर्म में स्थिर करते हैं-शिक्षा .
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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