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षष्ठ अध्ययन, उद्देशक 2
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____ मूलम्-अहेगे धम्ममायाय आयाणप्पभिइसु पणिहिए चरे, अप्पलीयमाणे दढे सव्वं गिद्धिं परिन्नाय, एस पणए महामुणी, अइअच्च सव्वओ संगं, न महं अत्थित्ति इय एगो अहं, अस्सि जयमाणे इत्थ विरए अणगारे सव्वओ मुण्डे रीयंते, जे अचेले परिवुसिए संचिक्खइ
ओमोयरियाए, से आकुठे वा हए वा लुंचिए वा पलियं पकत्थ अदुवा पकत्थ अतहेहिं सद्दफासेहिं इय संखाए एगयरे अन्नयरे अभिन्नाय तितिक्खमाणे परिव्वए जे य हिरी जे य अहिरीमाणा॥180॥
छाया-अथैके धर्ममादाय आदान प्रभृतिषु प्रणिहिताः चरेयुः अप्रलीयमानाः दृढ़ाः सर्वां गृद्धिं परिज्ञाय एष प्रणतः महामुनिः अतिगत्य सर्वतः संगं न मम अस्तीति इह एकोऽहं अस्मिन् यतमानः अत्र विरतः अनागारः सर्वतः मुण्डो रीयमाणो योऽचेलः पर्युषितः संतिष्ठते अवमौदर्ये स आक्रुष्टो वा हतो वा लुञ्चितो वा पलितं कर्म प्रकथ्य अथवा प्रकट्य अतथ्यैः शब्दस्पर्शः इति-संख्याय एकतरान अन्यतंरान् अभिज्ञाय तितिक्षमाणः परिव्रजेत् ये च हारिणो ये च अहारिणः।
पदार्थ-अहेगे-इसके अनन्तर कई एक। धम्ममायाय-श्रुत और चारित्र रूप धर्म को ग्रहण करके। आयाणप्पभिइसु-धर्मोपकरणादि से युक्त। पणिहिएपरीषहों के सहन करने वाले। चरे-सर्वज्ञोपदिष्ट धर्म का आचरण करें या करते हैं। अप्पलीयमाणे-माता-पिता आदि में अनासक्त। दढे-संयमादि में दृढ़। सव्वं-सर्व। गिद्धिं-भोगाकांक्षा को। परिन्नाय-ज्ञ परिज्ञा से जानकर तथा प्रत्याख्यान परिज्ञा से त्याग कर, इनको छोड़ देवे। एस-यह काम पिपासा का परित्यागी। पणए-संयम में अथवा कर्म धुनने में प्रवृत्त होता है, अतः वह। महामुणी-महामुनि होता है, फिर। संग-संग को। सव्वओ-सर्व प्रकार से। अइअच्च-अतिक्रम करके-निम्न प्रकार से भावना भावे। न महं अत्थित्ति-इस संसार में मेरा कोई नहीं है। इयइस प्रकार से। एगो अहं-मैं अकेला हूँ। अस्सिं-इस जिन प्रवचन में। जयमाणेदशविध प्ररूपित समाचारी में यत्न करता हुआ। इत्थ-इस जिन शासन में। विरए-सावद्यानुष्ठान से विरक्त होता है। अणगारे-वह अनगार। सव्वओ-सर्व प्रकार से। मुंडे-द्रव्य और भाव से मुंडित होकर। रीयंते-विचरता हुआ। जे-जो।