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________________ के द्वारा प्रदत्त देव-दूष्य वस्त्र के अतिरिक्त कोई वस्त्र नहीं लिया और इसके लिए भी उन्होंने यह प्रतिज्ञा की कि मैं हेमन्त ऋतु में इस वस्त्र को शरीर ढकने के लिए काम में नहीं लूंगा। उन्होंने उस वस्त्र को शीत-निवारण एवं डंस-मशक के कष्ट से बचने के लिए कभी भी काम में नहीं लिया। उन्होंने अनुधर्मिता-पूर्व तीर्थंकरों की परम्परा को निभाने के लिए ही इसे स्वीकार किया था। ___ चूर्णि में अनुधर्मिता का अर्थ गतानुगत किया है। तात्पर्य यह है कि भगवान ने दीक्षा के समय एक वस्त्र ग्रहण करने की परम्परा का पालन किया था। इसका एक दूसरा अर्थ-अनुकूल धर्म्य भी किया है। इसका अभिप्राय यह है कि भगवान को आगे चलकर सोपधिक-वस्त्र-पात्र आदि उपधि सहित धर्म का उपदेश देना था, इसलिए भगवान ने एक वस्त्र को स्वीकार किया। संस्कृत कोष में यह शब्द नहीं मिलता है। परन्तु पालि ग्रन्थों में यह शब्द 'अनुधम्मता' रूप में मिलता है। कोष में इसका अर्थ-"Lawfullness, Conformity to Dhamma" दिया है। पालि में 'अनुधम्म' शब्द भी मिलता है। इसका अर्थ है-Conformity or accordance with the law, Lawfullness, relation, essence consistansy truth. यदि इन अर्थों पर ध्यान दिया जाए तो अनुधर्मिता शब्द का अर्थ होता है-भगवान महावीर ने धर्म के अनुकूल आचरण किया। और चूर्णिकार द्वारा किया गया अर्थ भी उपयुक्त है। क्योंकि यह प्रश्न उठेगा कि भगवान ने कौन-से धर्म का आचरण किया। इसका समाधान यह होगा कि जो धर्म परम्परा से तीर्थंकरों द्वारा आचरित था और व्यवहार में रूढ़ हो रहा था। अतः वह केवल धर्म ही नहीं, अनुधर्म-परम्परा से चला आ रहा धर्म था'। ___ इसके आगे बताया गया है कि दीक्षा के पूर्व उनके शरीर पर चन्दनादिं सुवासित पदार्थों का लेपन किया गया था। उस सुवास का आस्वादन करने के लिए भ्रमर-मधुमक्षिका आदि जीव-जन्तु उनके शरीर पर बैठने एवं डंक मारने लगे। फिर भी भगवान अपने ध्यान से विचलित नहीं हुए। वे समभाव पूर्वक उन परीषहों को तथा वैसे एवं उनसे भी भयंकर अन्य परीषहों को भी सहन करते रहे। वे सदा ईर्यासमिति से मार्ग को देखकर चलते थे। स्त्री-संसर्ग एवं विषय-वासनाओं 1. श्रमण, वर्ष 9, अंक 9, पृष्ठ 27।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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