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षष्ठ अध्ययन, उद्देशक 1
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रोग-व्याधियों की कोई परिमित संख्या नहीं है। फिर भी प्रमुख रोग 16 प्रकार के माने गए हैं। उनका नाम-निर्देश करते हुए सूत्रकार ने लिखा है
1-गंडमाला-यह रोग वात, पित्त, कफ और इन तीनों का सन्निपात, इस प्रकार यह चार प्रकार का होता है। लोक भाषा में इसे कंठमाला कहते हैं। इसमें सन्निपात असाध्य रोग माना गया है। ____2-कुष्ठरोग-यह रोग अठारह प्रकार का होता है। इसमें सात प्रकार के महा-कुष्ठ-असाध्य और ग्यारह प्रकार के क्षुद्र-सामान्य कुष्ठ होते हैं। 1-अरुण, 2-उदुम्बर, 3-निश्यजिह्र, 4-कपाल, 5-काकनाद, 6–पौंडरीक और 7–दद्रु ये महाकुष्ठ हैं। 1-स्थूलासत्व, 2–महाकुष्ठ, 3-एक कुष्ठ, 4-चर्मदल, 5-परिसर्प, 6-विसर्प, 7-सिम, 8-विचर्चिका, 9-पिष्टिम, 10-पामा, 11-शतारुक ये क्षुद्र कुष्ठ कहलाते हैं।
3-राजयक्ष्मा-इसे क्षय रोग या टी.बी. भी कहते हैं। यह रोग पेशाब-टट्टी आदि के रोकने से, धातु क्षय से, अत्यन्त साहस एवं शक्ति का काम करने से तथा विषम भोजन से होता है। ___4-अपस्मार-इस रोग में स्मृति के ऊपर आवरण-सा आ जाता है। इस रोग में रोगी को मूर्छा आ जाती है। इसे लोक भाषा में मिरगी एवं अँगरेजी में हिस्टेरिया की बीमारी भी कहते हैं।
5-काणत्व-एक आंख की रोशनी का चला जाना। यह रोग गर्भ में भी हो जाता है और जन्म के बाद भी हो जाता है। .. 6-जाड्यता-इस रोग में शरीर संचालन क्रिया से शून्य हो जाता है।
7-कुणि-इस रोग में एक पैर या एक हाथ बड़ा और दूसरा पैर या हाथ छोटा हो जाता है।
8-कुब्जरोग-इसमें पीठ पर कूबड़ उभर आता है।
9-उदररोग-यह रोग वात-पित्त आदि के प्रकोप से होता है। यह आठ प्रकार का होता है-1-जलोदर, 2-वातोदर, 3-पित्तोदर, 4-कफोदर; 5-कंठोदर, 6-प्लीहोदर 7-उदर और 8-बद्ध गुदोदर।