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________________ पंचम अध्ययन, उद्देशक 5 629 मानता है और न अभिन्न ही। गुण और गुणी की अपेक्षा से आत्मा और ज्ञान अभिन्न प्रतीत होते हैं, तो कर्ता एवं करण की अपेक्षा से भिन्न भी परिलक्षित होते हैं। इनका भेद करण के बाह्य और आभ्यन्तर भेद पर आधारित है। जैसे देवदत्त आत्मा का आत्मा से निश्चय करता है, इसमें देवदत्त-आत्मा एवं निश्चय ज्ञान की एकरूपता दिखाई देती है और देवदत्त कलम से पत्र लिखता है, इसमें देवदत्त एवं कलम से लिखने की भिन्नता स्पष्ट प्रतीत होती है। इस प्रकार ज्ञान आत्मा से भिन्न भी है और अभिन्न भी है। प्रस्तुत सूत्र में उसका गुण-गुणी की दृष्टि से उल्लेख किया गया है, अतः यहां उसकी अभिन्नता ही दिखाई गई है। निष्कर्ष यह निकला कि आत्मा ज्ञानवान है। उसमें सत्ता रूप से अनन्त ज्ञान स्थित है। परन्तु, ज्ञानावरणीय कर्म के आवरण से उसकी शक्ति प्रच्छन्न रहती है। उक्त कर्म का जितना क्षय एवं क्षयोपशम होता रहता है, आत्मा में उतना ही ज्ञान का प्रकाश फैलता रहता है। जब उक्त कर्म का सर्वथा क्षय कर दिया जाता है, तब आत्मा में पूर्ण ज्ञान की ज्योति जगमगा उठती है। ज्ञान के इस विकास को पांच प्रकार का माना गया है-1-मति ज्ञान, 2-श्रुतज्ञान, 3–अवधिज्ञान, 4-मनः-पर्यवज्ञान और 5-केवलज्ञान। जिस व्यक्ति के जीवन में दर्शन मोहनीय कर्म का उदय रहता है, उसमें भी ज्ञान का सद्भाव होता है। परन्तु, मोह कर्म के उदय से वह ज्ञान सम्यक् नहीं, मिथ्या ज्ञान कहलाता है। उसके तीन भेद किए गए हैं-1-मति अज्ञान, 2-श्रुत अज्ञान, 3-विभंग ज्ञान। इस ज्ञान के द्वारा ही आत्मा पदार्थों को जानता है और वह (ज्ञान) सदा-सर्वदा आत्मा के साथ संबद्ध रहता है। इसलिए उसे आत्मा कहा है। .. आत्मविकास में सम्यग् ज्ञान ही कारणभूत है। उसी के द्वारा साधक पदार्थों के यथार्थ स्वरूप को जानकर संयम को स्वीकार करता है और रत्नत्रय की शुद्ध आराधना करके निर्वाण पद को प्राप्त करता है। अतः साधक को आत्मा में स्थित अनन्त ज्ञान पर पड़े हुए आवरण को क्षय करके निरावरण ज्ञान प्राप्त करने के लिए सदा संयम-साधना में संलग्न रहना चाहिए। ___ 'त्तिबेमि' का अर्थ पूर्ववत् समझें। ॥ पंचम उद्देशक समाप्त ॥
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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