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________________ 628 - श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध मूलार्थ-जो आत्मा है वह विज्ञाता है, जो विज्ञाता है वह आत्मा है, जिसके द्वारा जानता है वह आत्मा है, उस ज्ञान पर्याय की अपेक्षा से आत्मा कहलाता है, इस प्रकार वह आत्मवादी कहा गया है, और फिर उसका सम्यक् प्रकार से संयम पर्याय कहा गया है। इस प्रकार मैं कहता हूं। हिन्दी-विवेचन प्रस्तुत सूत्र में आत्मा और ज्ञान की एक रूपता बताई गई है। आगम में आत्मा का लक्षण उपयोग-ज्ञान और दर्शन माना गया है। इससे स्पष्ट है कि ज्ञान के बिना आत्मा का अस्तित्व नहीं रह सकता। जहां ज्ञान परिलक्षित होता है, वहां आत्मा की प्रतीति होती है और जहां चेतना का आभास होता है, वहां ज्ञान की ज्योति अवश्य रहती है। जैसे सूर्य की किरणें और प्रकाश एक-दूसरे के अभाव में नहीं रह सकते। जहां किरणें होंगी वहां प्रकाश भी अवश्य होगा और जहां सूर्य का प्रकाश होगा वहां किरणों का अस्तित्व भी निश्चित रूप से होगा। उसी प्रकार आत्मा ज्ञान के बिना नहीं रह सकती। जिस पदार्थ में ज्ञान का अभाव है, वहां आत्मचेतना की प्रतीति भी नहीं होती, जैसे स्तम्भ आदि जड़ पदार्थ। ___ यह सत्य है कि ज्ञान गुण है और आत्मा गुणी है। इस दृष्टि से ज्ञान और आत्मा दो भिन्न पदार्थ हैं। परन्तु यह भी सत्य है कि गुण सदा गुणी में रहता है। गुणी के अतिरिक्त अन्यत्र उसका कहीं अस्तित्व नहीं पाया जाता और उसका गुणी आत्मा ही है। अतः इस दृष्टि से वह आत्मा से भिन्न होते हुए भी अभिन्न है, क्योंकि सदा-सर्वदा आत्मा में ही स्थित रहता है। इसी अभिन्नता को बताने के लिए प्रस्तुत सूत्र में कहा गया कि जो आत्मा है वही विज्ञाता-जानने वाला है और जो विज्ञाता है वही आत्मा है। इससे आत्मा और विज्ञाता में एकरूपता परिलक्षित होती है। प्रश्न हो सकता है कि आगम में आत्मा को कर्ता एवं ज्ञान को करण माना गया है। कर्ता और करण दोनों भिन्न होते हैं। यहां दोनों की अभिन्नता बताई गई है, अतः दोनों विचारों में एकरूपता कैसे होगी? __इसका समाधान यह है कि जैन दर्शन प्रत्येक पदार्थ पर स्यादवाद्-अनेकान्त की दृष्टि से सोचता-विचारता है। अतः उसके चिन्तन में विरोध को पनपने का अवकाश ही नहीं रहता। वह आत्मा और ज्ञान को न तो एकान्त रूप से भिन्न ही
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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