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________________ पंचम अध्ययन, उद्देशक 5 617 व-और वे। पन्नाणमंता-प्रज्ञावन्त आगमों के ज्ञाता हैं। पबुद्धा-प्रबुद्ध तत्वज्ञ हैं। आरम्भोवरया-आरम्भ से निवृत्त हैं। सम्ममेयंति-जो कुछ मैंने कहा है, उसे सम्यक् प्रकार से। पासह-देखो, क्योंकि संयमी पुरुष। कालस्स-समाधि मरण रूप काल की। कंखाए-आकांक्षा रखते हुए संयम मार्ग में। परिब्बयंति-भली-भांति चलने का प्रयत्न करते हैं। त्तिबेमि-ऐसा मैं कहता हूँ। ___ मूलार्थ-तीर्थंकर भगवान ने आचार्य के गुणों का जैसा वर्णन किया है, वैसा ही मैं तुम्हें कहता हूं। जैसे एक जल से परिपूर्ण उपशान्त रज वाला जलाशय समभूमि में ठहरा हुआ, जलचर जीवों का संरक्षण करता हुआ स्थित है, इसी प्रकार आचार्य भी सद्गुणों से युक्त, उपशान्त एवं गुप्तेन्द्रिय हैं। वे श्रुत का अनुशीलनपरिशीलन करते हैं एवं अन्य साधुओं को भी श्रुत का बोध कराते हैं। हे शिष्य! तू लोक में उनको देख जो महर्षि हैं, आगमवेत्ता, तत्त्वज्ञ एवं आरंभ-समारंभ से निवृत्त हैं। हे शिष्य! तू मध्यस्थ भाव से उनके जीवन का अवलोकन कर, वे महापुरुष जलाशय के समान हैं। अतः मुमुक्षु पुरुष को समाधि मरण की आकांक्षा करते हुए संयम पालन में संलग्न रहना चाहिए, ऐसा मैं कहता हूँ। हिन्दी-विवेचन संघ की व्यवस्था के लिए, साधु-साध्वियों में अनुशासन बनाए रखने के लिए शास्ता का होना जरूरी है। आगम की परिभाषा में शास्ता को आचार्य कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में उनके गुणों एवं उनकी श्रुत संपदा को जलाशय की उपमा देकर वर्णन किया गया है। जलाशय की विशेषता का उल्लेख करते हुए चार बातें बताई गई हैं-1-जलाशय समभूमि पर होता है, 2-जल से परिपूर्ण होता है, 3-उपशान्त रज वाला होता है, और 4-जलचर जीवों का संरक्षक या आश्रयभूत होता है। सरोवर का महत्त्व इन्हीं चार विशेषताओं से ही स्थित है। यदि सरोवर समतल भूमि पर नहीं है तो प्रत्येक प्राणी सुगमता से उसके पानी का लाभ नहीं उठा सकता। दूसरे, जल से रहित सरोवर का कोई मूल्य नहीं है, जिससे किसी भी प्राणी को लाभ नहीं पहुंचता। तीसरे, सरोवर का उपशान्त रजमय होना उसकी स्वच्छता का प्रतीक है और स्वच्छ जल प्रत्येक व्यक्ति के लिए लाभप्रद हो सकता है और चौथे यह कि जलचर जीवों के संरक्षक के रूप में उसकी परोपकारिता परिलक्षित होती है। वह जैसे मत्स्य आदि
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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