________________
पंचम अध्ययन, उद्देशक 4
मोहकर्म को क्षय करने का प्रयत्न करना चाहिए और वासना एवं विकृति को रोकने के लिये कामोत्तेजक आहार एवं ऐसे अन्य साधनों का त्याग करना चाहिए। विषयों से विरक्त रहने के लिए साधु को नीरस भोजन करना चाहिए। एक गांव में लम्बे समय तक नहीं रहकर ग्रामनुग्राम विचरना चाहिए, आतापना लेनी चाहिए, एकान्त स्थान में या पर्वत के शिखर पर कायोत्सर्ग करना चाहिए तथा तपश्चर्या करते रहना चाहिए।
इसके साथ उसे सोचना चाहिए कि स्त्री के कारण कलह-कदाग्रह होते रहते हैं। इतिहास में भी इसके अनेकों प्रमाण मिलते हैं। इसके अतिरिक्त स्त्री-संसर्ग से शारीरिक शक्ति का ह्रास होता है। व्यभिचारी व्यक्ति का दुनिया में तिरस्कार होता है। इस तरह सोचकर विषय-वासना का त्यागी साधु विषय-विकार की ओर आकर्षित न हो,
और उसे स्त्री-कथा, स्त्री-परिचर्या एवं उसके साथ रहस्यपूर्ण बातचीत नहीं करनी चाहिए। इसके लिए आगम में, मन-वचन और शरीर को गोपकर रखने का विधान किया गया है। __ इस तरह साधु को विवेक के साथ संयम का परिपालन करना चाहिए। अनुकूल एवं प्रतिकूल परीषहों से पराभूत होकर संयम से भ्रष्ट नहीं होना चाहिए।
॥ चतुर्थ उद्देशक समाप्त ॥