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पंचम अध्ययन, उद्देशक 4 आगमित्ता-जानकर। आणविज्जा-स्वात्मा को शिक्षित करे। अणासेवणाए-विषयों का सेवन न करना चाहिए, अर्थात् अपने आत्मा को विषयों से पराङ्मुख रहने की शिक्षा देवे। तिबेमि-इति शब्द अधिकार की परिसमाप्ति में है, गणधर श्री सुधर्मा स्वामी कहते हैं! हे शिष्य यह मैं तीर्थंकर वचन के अनुसार कहता हूँ। अब सूत्रकार स्त्री के परिहरण के विषय में कहते हैं। से-वह त्यागी भिक्षु। नोकाहिए-स्त्री के शृंगारादि की कथा न करे। नो पासणिए-स्त्री के अंग-प्रत्यंग का अवलोकन न करे। नो मामए-स्त्री के साथ न ममत्व करे। णो कय किरिए-तथा स्त्री मंडनादि क्रियायें न करे अर्थात् स्त्री की वैयावृत्य न करे। वइगुत्ते-वचन से संलाप न करे। अझप्पसंबुड़े-अध्यात्म संवृत स्त्री के विषय में मन से भी विचार न करे, तथा। सया-सदा। पावं-पाप कर्म को। परिवज्जइ-त्याग देवे। एयं-यह। मोणंमुनित्व-मुनि भाव है गुरु कहते हैं हे शिष्य! इस मुनि भाव को तू। समणुवासिज्जासिसम्यक् प्रकार से पालन कर। त्तिबेमि-इस प्रकार मैं कहता हूँ। - मूलार्थ-वह भिक्षु प्रभूत देखने वाला, प्रभूत ज्ञान वाला, उपशान्त, समितियों से समित, ज्ञानयुक्त, सदा यन्नशील स्त्रीजन को देख कर अपने आत्मा को शिक्षित करे कि हे आत्मन्! यह स्त्री जन तुम्हारा क्या करेगा! यह स्त्री जन समस्त लोक में परमाराम रूप है, इस प्रकार से कामीजन मानते हैं ऐसा श्री वर्धमान स्वामी ने वर्णन किया है। विचारशील भिक्षु यदि ग्रामधर्म-विषय से पीड़ित हो जाए तो उसे नीरस आहार करना चाहिए, ऊनोदरी तप करना चाहिए, ऊंचे स्थान पर खड़ा होकर कायोत्सर्ग द्वारा आतापना लेनी चाहिए, ग्रामानुग्राम विचरना चाहिए। आहार का परित्याग करना चाहिए (यहां तक कि ऊँचे से गिर कर प्राण त्याग कर देने चाहिए), परन्तु मन को स्त्रीजन में आसक्त नहीं करना चाहिए, कारण कि स्त्रीसंग से पहले (दंड-धनादि में उपार्जन के लिए महाकष्ट) होता है, पीछे से नरकादि जनित दुःखों का स्पर्श होता है तथा पहले स्त्री के अंग-प्रत्यंग का स्पर्श और पीछे नरकादि यातनाओं का दंड भोगना पड़ता है, ये स्त्रियाँ कलह और संग्रामादि का कारण हैं
और भयंकर राग-द्वेष को उत्पन्न करने वाली हैं। इस प्रकार बुद्धि से विचार करके कर्म के विपाक को सन्मुख रखकर विचारशील भिक्षु अपने आत्मा को शिक्षित करे। इस प्रकार मैं कहता हूँ। फिर वह त्यागी भिक्षु स्त्री की कथा न करे, उसके अंग-प्रत्यंग का अवलोकन न करे, उसके साथ एकान्त में किसी प्रकार की पर्यालोचना