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________________ 610 _श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध पदार्थ-से-वह भिक्षु । अभिक्कममाणे-जाता हुआ। पडिक्कममाणे-पीछे हटता हुआ। संकुचमाणे-हस्तादि का संकोच करता हुआ। पसारेमाणे-पादादि को पसारता-फैलाता हुआ। विणिवट्टमाणे-अशुभ व्यापार से निवृत्त होता हुआ। एगया संपलिज्जमाणे-सम्यक् प्रकार से प्रमार्जन करता हुआ। एगया-एकदा किसी समय। गुणसमियस्स-गुण युक्त, अप्रमत्त भाव से। रीयओ-चलते हुए वे। कायसंफासं-काय के स्पर्श से। समणुचिन्ना-स्पर्शित हुआ। एगतिया-कई एक। पाणा-प्राणी। उद्दायंति-मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं अथवा परितापना युक्त हो जाते है, तब। इहलोगवेयण विज्जा वडियं-इस लोक में वेदना का अनुभव करके उसे क्षय कर देवे। जं-जो। आउट्टिकयं-जो जान कर किया हुआ। कंमं-हिंसादि कर्म है। तं-उसको। परिन्नाय-ज्ञपरिज्ञा से जानकर और प्रत्याख्यान परिज्ञा से प्रत्यख्यान करके। विवेगमेइ-विवेक परिज्ञा द्वारा उस कर्म को क्षय कर देवे। एवं-इस प्रकार। से-वह सांपरायिक कर्म । अप्पमाएण-अप्रमाद के द्वारा। विवेगं-क्षय कर देवे। इस प्रकार। वेयवी-तीर्थंकर वा गण (धरों) ने। किट्टइ-कहा है। मूलार्थ-समस्त अशुभ व्यापार से अलग रहने वाला भिक्षु चलते हुए, पीछे हटते हुए, हस्त पादादि अंगों को संकोचते हुए और फैलाते हुए, भली प्रकार से रजोहरणादि के द्वारा शरीर के अङ्गोपांग तथा भूमि आदि का प्रमार्जन करता हुआ गुरुजनों के समीप निवास करे। इस प्रकार अप्रमत्त भाव से सम्पूर्ण क्रियानुष्ठान करते हुए गुण युक्त मुनि से यदि किसी समय चलते-फिरते हुए काय-शरीर के स्पर्श से किसी प्राणी-संपातिमादि जीव की मृत्यु हो जावे तो वह भिक्षु उस कर्म के फल को इसी लोक में वेदनादि का अनुभव करके क्षय कर दे, परन्तु जान-बुझकर किया गया हो तो उसको तप अनुष्ठान के द्वारा क्षय कर दे, यह कर्म क्षय करने का विधान तीर्थंकरों ने किया है। हिन्दी-विवेचन प्रस्तुत सूत्र में प्रमाद और अप्रमाद का सुन्दर शब्दों में विश्लेषण किया गया है। प्रमाद आरम्भ-समारम्भ एवं सब पापों का मूल है। प्रमाद पूर्वक कार्य करने से अनेक जीवों की हिंसा होती है, पाप कर्म का बन्ध होता है। इसलिए साधु के लिए आगम
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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