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________________ श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध व्यक्ति को किस गुण की प्राप्ति होती है, इसका विवेचन करते हुए सूत्रकार कहते हैं 586 संधि मूलम् - समुप्पेहमाणस्स इक्काययणरयस्स इह विप्पमुक्स्स नत्थि म विरयस्स त्तिमि ॥149 ॥ छाया - सम्यगुत्प्रेक्षमाणस्य एकायतनतस्य इह विप्रमुक्तस्य नास्तिमार्गः विरतस्य इति ब्रवीमि । 1 पदार्थ - समुप्पेहमाणस्स - सम्यक् प्रकार के अनुप्रेक्षा करने वाले को । इक्काययणरयस्स - ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप रत्न त्रय में संलग्न रहने वाले . को । इह विप्पमुक्कस्स - इस शरीर के ममत्व से रहित व्यक्ति को । विरयस्स - हिंसा आदि आस्रवों से निवृत्त व्यक्ति को । नत्थि मग्गे - नरकादि गतियों का मार्ग प्राप्त नहीं होता । त्तिबेमि - इस प्रकार मैं कहता हूँ । 1 मूलार्थ - सम्यक् प्रकार से अनुप्रेक्षा करने वाला, ज्ञान दर्शन एवं चारित्र रूप रत्नत्रय का आराधक, शरीर पर ममत्व नहीं रखने वाला और हिंसा आदि आस्रवों से निवृत्त साधक नरकादि गतियों में नहीं जाता ऐसा मैं कहता हूं । हिन्दी - विवेचन यह हम देख चुके हैं कि संसार परिभ्रमण एवं नरकादि गतियों में उत्पन्न होने का कारण पापकर्म है। विषय कषाय में आसक्ति एवं हिंसा आदि दोषों में प्रवृत्ति होने से पाप कर्म का बन्ध होता है और इस तरह विषयासक्त व्यक्ति संसार में भ्रमण करता रहता है । अतः संसार का अन्त करने के लिए आगम में हिंसा आदि दोषों से निवृत्त होने का उपदेश दिया गया है। प्रस्तुत सूत्र में यही बताया गया है कि जो साधक रत्नत्रय की साधना में संलग्न है, शरीर एवं संयम पालन के अन्य साधनों पर ममत्व भाव नहीं रखता है और विषय- कषाय एवं हिंसा आदि दोषों से आसक्त नहीं है, वह नरक, तिर्यंच आदि गतियों में नहीं जाता। प्रस्तुत सूत्र में “इक्काययणरयस्स” शब्द का प्रयोग किया गया है। जिसके द्वारा
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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