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________________ 587 पंचम अध्ययन, उद्देशक 2 - आत्मा को सब तरह से पापों से रोका जाए उसे आयतन कहते हैं । यह ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप रत्नत्रय के नाम से प्रसिद्ध है और उस रत्नत्रय में संलग्न रहने वाले साधक को 'एकायतन रत' कहते हैं । अतः 'इक्काययणरयस्स' का अर्थ हुआ जो साधन रत्नत्रय की साधना-आराधना में संलग्न है । 'नत्थिमग्गे विरयस्स' का तात्पर्य यह है कि जो साधु हिंसा आदि दोषों से विरक्त है, निवृत्त है, उसके संसार परिभ्रमण का मार्ग नहीं रह जाता है। दोषों से निवृत्त व्यक्ति का वर्णन करके अब सूत्रकार अविरत एवं परिग्रही . व्यक्ति के विषय में कहते हैं मूलम् - आवंती यावंती लोगंसि परिग्गहावंती, से अप्पं वा बहु वा अणुं वा थूलं वा चित्तमतं वा अचित्तमंतं वा एएसु चेव परिग्गहावंती, एतदेव गेसिं महब्भयं भवइ, लोगवित्तं च णं उवेहाए, एए संगे अवियाणओ ॥15॥ छाया - यावन्तः केचन लोके परिग्रहवन्तः तदल्पं वा बहुं वा अणुं वा स्थूलं वा चित्तवंद् वाचित्तवद् वा एतेष्वेव परिग्रहवन्तः एतदेव एकेषां महाभयं भवति लोकवित्तं च (वृत्तम्) उत्प्रेक्ष्य एतान् संगानविजानतः । पदार्थ - आवंती - जितने । केयावंती-कितनेक । लोगंसि - लोक में । परिग्गहावंती-परिग्रह वाले हैं। से-वह- द्रव्य । अप्पं- अल्प । वा-अथवा । बहुबहुत । वा-अथवा । अणु - छोटा मूल में वा भार में । वा - अथवा । थूलं - स्थूल । वां - अथवा | चित्तमंतं - चेतना वाला । वा - अथवा । अचित्तमंतं - चेतना से रहित । वा - परस्पर अपेक्षा में । एएसु - इस परिग्रह में गृहस्थों के समान साधु भी हो जाते हैं - यदि वे परिग्रह से युक्त हों तो । च- पुनः । एव - अवधारणार्थ में जानना । परिग्गहावंती - वे भी परिग्रह वाले ही होते हैं । एतदेव - इसी परिग्रह में भी । एगेसिं- बहुतों को। महब्भयं - महाभय । भवइ - होता है । च - पुनः । णं - वाक्यांलकार अर्थ में है। लोगवित्तं—असंयत्त लोक में वित्त- धन-वा लोकवृत्त, आहार, भय, मैथुन परिग्रह आदि। उवेहाए–विचार कर ( इनका परित्याग करे ) तथा । एए-इन अल्प परिग्रह आदि के। संगे - संग को । अवियाणओ - न जानता हुआ । मूलार्थ-लोक में कितनेक परिग्रह वाले होते हैं, वह परिग्रह अल्प, बहुत स्थूल,
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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