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________________ 564 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध वाला। इह-इस संसार में। मच्चिएहि-मनुष्यों के मध्य में। कम्माणं-कर्मों के। सफलं-फल को। दळूणं-देश कर। तओ-तत्पश्चात् । वेयवी-आगमों के जानने वाला। निज्जाइ-कर्मों के स्रोत से पृथक् हो जाता है, अर्थात् निष्कर्मदर्शी आत्मा कर्मों के स्रोत से निर्गच्छति-निकल जाता है। सकाम व अकाम निर्जरा से कर्मों को नष्ट कर देता है। मूलार्थ-जिस आत्मा को पूर्व काल में सम्यक्त्व का लाभ नहीं हुआ, आगामी काल में होने का नहीं तो फिर उसको मध्य काल में सम्यक्त्व का लाभ किस प्रकार हो सकता है? हे शिष्यो! तुम उन बुद्धिमानों तथा तत्त्वों को जानने वाले आरंभ से निवृत्त और सम्यग् देखने वाले व्यक्तियों को देखो! जिस कारण से बन्ध-वध-घोर भयंकर और दारुण परिताप को तथा बाह्य और आम्यन्तरिक स्रोतों को दूर करके जो निष्कर्मदर्शी बने हैं, वे इस लोक में सबसे बढ़कर हैं। आगमवेत्ता कर्मों के फल को देखकर तत्पश्चात् आस्रव स्रोत से निकल जाता है, अर्थात् आस्रव का सर्वथा निरोध कर देता है। हिन्दी-विवेचन कुछ जीव ऐसे है, जिन्होंने न अतीत काल में सम्यक्त्व का स्पर्श किया है और न अनागत काल में करेंगे। उन जीवों को आगमिक भाषा में अभव्य जीव कहते हैं। वे कभी भी सम्यक्त्व का स्पर्श नहीं करते। आगम में उनके लिए स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि अतीत काल में उन्होंने सम्यक्त्व का न स्पर्श किया और न अनागत में करेंगे और अतीत एवं अनागत इन दोनों काल में अनन्त-अनन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी का समावेश हो जाता है। इनके मध्य का काल, अर्थात् वर्तमान काल तो केवल एक समय का होता है। अतः जब इन दोनों काल में वे सम्यक्त्व के प्रकाश को नहीं पा . सकते तो मध्य काल में पाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। इसलिए ऐसे अभव्य जीव कभी भी मोक्ष मार्ग पर नहीं चल सकते। कुछ जीव ऐसे हैं कि जिन्होंने अतीत काल में सम्यक्त्व का स्पर्श कर लिया परन्तु मोह कर्म के उदय से वे फिर से मिथ्यात्व में गिर गए। ऐसे जीव अनागत काल में फिर से सम्यक्त्व को प्राप्त करके अपने साध्य को सिद्ध कर लेते हैं। एक बार
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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