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________________ 544 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध .. आसक्त होकर बार-बार जन्म-मरण करता है, एकेन्द्रिय आदि विभिन्न जातियों में परिभ्रमण करता रहता है। हिन्दी-विवेचन प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि प्रबुद्ध पुरुष आर्त एवं प्रमादी जीवों को संयम-साधना में संलग्न रहने के लिए सदा प्रेरित करता रहता है। परन्तु साथ में यह भी बता दिया है कि उपदेश का प्रभाव उन्हीं जीवों पर पड़ता है, जो ज्ञान-विज्ञान से युक्त हैं। वस्तुतः आत्म-स्वरूप को जानने या जानने की जिज्ञासा रखने वाले व्यक्ति ही उपदेश को सुनकर आचरण में ला सकते हैं। कभी-कभी परिस्थितिवश ज्ञानी व्यक्ति भी भटक जाते हैं, परन्तु फिर से निमित मिलने पर वे साधना के पथ पर चल । पड़ते हैं। चिलायति पुत्र जैसे हिंसक मानव एवं शालिभद्र जैसे काम-भोगों में आसक्त व्यक्ति भी प्रबुद्ध पुरुष का संकेत पाकर अपने जीवन को बदलने में देर नहीं करते। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि अत्यन्त दुःखी एवं अत्यधिक सुखी तथा मध्यम अवस्था के सभी पुरुष धर्मोपदेश के अधिकारी हैं। इसलिए प्रबुद्ध मानव प्रत्येक जीव को धर्मोपदेश देते रहते हैं कि संसार में कोई भी प्राणी ऐसा नहीं है, जो मृत्यु को प्राप्त न करता हो, अर्थात् सभी प्राणी मरते हैं। जो जीव नहीं मरते हैं, वे संसारी नहीं, अपितु सिद्ध हैं। संसारी जीव जब तक घातिकर्मों का क्षय नहीं कर लेता हैं, तब तक जन्म-मरण के प्रवाह में बहता रहता है; इसलिए मानव को कर्मक्षय करने का प्रयत्न करना चाहिए। जो व्यक्ति इस ओर प्रयत्न न करके विषय-वासना में आसक्त रहता है, ऐहिक एवं भौतिक सुखों को बटोरने में व्यस्त रहता है, वह पाप-कर्म का बन्ध करता है और परिणामस्वरूप एकेन्द्रिय आदि विभिन्न जातियों में परिभ्रमण करता है। इसलिए साधक को विषयेच्छा का त्याग करके संयम का परिपालन करना चाहिए। क्योंकि जो विषयासक्त जीव दुःखों का संवेदन करते रहते हैं, वे प्राणी किस प्रकार की वेदना एवं दुःखों का संवेदन करते हैं, इस बात को स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्-इहमेगेसिं तत्थ तत्थ संथवो भवइ, अहोववाइए फासे । पडिसंवेयंति, चिट्ठ कम्मेहिं कूरेहिं चिट्ठ परिचिट्ठइ, अचिठें कूरेहि
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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