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________________ 532 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध हत्तव्वा, न अज्जावेयव्वा, न परिघि त्तव्वा, न परियावेयव्वा, न उद्दवेयव्वा, एस धम्मे सुद्धे, निइए सासए समिच्च लोयं खेयण्णेहिं पवेइए, तंजहा-उट्ठिएसु वा अणुट्ठिएसु वा उवट्ठिएसु वा अणुवट्ठिएसु वा उवरयदंडेसु वा अणुवरएदंडेसु वा सोवहिएसु वा अणोवहिएसु वा संजोगरएसु वा असंजोगरएसु वा तच्च चेयं तहा चेयं अस्सिं चेयं पवुच्चइ॥127॥ ___ छाया-अथ ब्रवीमि ये अतीताः ये प्रत्युत्पनाः ये आगामिनः (अनागताः) अर्हन्तः भगवन्तः ते सर्वे एवमाचक्षते एवं भाषन्ते एवं ज्ञापयन्ति एवं प्ररूपयन्ति सर्वे प्राणाः सर्वाणि भूतानि सर्वे जीवाः सर्वे सत्त्वाः न हन्तव्याः न ज्ञापयितव्याः न परिग्राह्याः न परितापयितव्याः नापद्रावयितव्याः एष धर्मः शुद्धः नित्यः शाश्वतः समेत्य लोकं खेदज्ञैः प्रवेदितः तद्यथा-उत्थितेषु वा अनुत्थितेषुवा उपस्थितेषुवा अनुपस्थितेषुवा उपरतदंडेषुवा अनुपरतदण्डेषुवा, सोपधिकेषुवा अनोपधिकेषुवा संयोगरतेषुवा असंयोगरतेषुवा तथ्यंचैतत् तथा चैतत् अस्मिन् चैतत् प्रोच्यते। पदार्थ-से-मैं। बेमि-कहता हूँ। जे-जो। अईया-अतीत काल में हो गए। य-और। पडुप्पन्ना-जो वर्तमान काल में हैं तथा जो। आगमिस्सा-भविष्य काल में होंगे। अरहंता-अर्हन्त। भगवंतो-भगवन्त। ते-वे। सव्वे-सब। एवमाइक्खंति-इस प्रकार कहते हैं। एवं-इस प्रकार। भासंति-भाषण करते हैं। एवं-इस प्रकार। पण्णविंति-प्रज्ञापन करते हैं। एवं-इस प्रकार। परूविंति-प्ररूपण करते है। सवे-सर्व। पाणा-प्राणी। सव्वे-सब। भूया-भूत। सब्वे-सब। जीवाजीव। सव्वे-सब। सत्ता-सत्त्व। न हंतव्वा-न मारने चाहिए। न अज्जावेयव्वा-न दूसरों से मरवाने चाहिए। न परिघितव्वा-न किसी अन्य के द्वारा पकड़वाने चाहिए। न परियावेयव्वा-न इनको परितापना देनी चाहिए। न उद्दवेयव्वा-न इनके ऊपर उपद्रव करना चाहिए अर्थात् प्राणों से वियुक्त न करना चाहिए। एस धम्मे-यह अहिंसा रूप धर्म। सुद्ध-शुद्ध है। निइए-नित्य है। सासए-शाश्वत है। लोयं-जंतु लोक के दुःख सागर के अवगाढ़ को। समिच्च-विचार कर।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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