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________________ तृतीय अध्ययन, उद्देशक 4 529 जे-जो। तिरियदंसी-तिर्यक् दी है। से-वह। दुक्खदंसी-दुःख के देखने वाला है। से-वह। मेहावी-बुद्धिमान है जो इन से। अमिणिवट्टिज्जा-निवृत्ति करे तथा बुद्धिमान वही है जो निम्नलिखित कारणों से निवृत्ति करता है, यथा। कोहं च-क्रोध। माणं च-मान। मायां च-माया। लोभं च-लोभ । पिज्जं च-प्रेम-राग। दोसं च-द्वेष । मोहं च-मोह। जम्मं च-जन्म। मारं च-मरण। नरयं च-नरक। तिरियं च-तिर्यक्, और। दुक्खं च-दुःख से। (चकार शब्द प्रेरणार्थ वा समुच्चय अर्थ वा पादपूर्णार्थ में जानना चाहिए। तथा उक्त पदों का अर्थ द्वितीय विभक्ति का करना और भावार्थ में पांचवीं विभक्ति का भी हो सकता है) एयं-यह। पासगस्स-तीर्थंकर देव का। दंसणं-दर्शन है, जो कि। उवरय सत्थस्स-शस्त्र से उपरत हैं। पलियंतकरस्स-कर्मों का अन्त करने वाले हैं। किं-क्या। पासगस्सपश्यक केवली भगवान को। ओवाहि-उपाधि है। अत्थि-है? न विज्जइ-न विद्यते, नहीं है। नत्थि-नहीं है। त्तिबेमि-इस प्रकार मैं कहता हूँ। मूलार्थ-जो क्रोध के देखने वाला है, वह मान के देखने वाला है, जो मान के देखने वाला है, वह माया के देखने वाला है, जो माया के देखने वाला है, वह लोभ के देखने वाला है, जो लोभ के देखने वाला है, वह राग के देखने वाला है, जो राग के देखने वाला है, वह द्वेष के देखने वाला है, जो द्वेष के देखने वाला है, वह मोह के देखने वाला है, जो मोह के देखने वाला है, वह गर्भ के देखने वाला है, जो गर्भ के देखने वाला है, वह जन्म के देखने वाला है, जो जन्म के देखने वाला है, वह मरण के देखने वाला है, जो मरण-मृत्यु के देखने वाला है, वह नरक के देखने वाला है, जो नरक के देखने वाला है, वह तिर्यक् के देखने वाला है, जो तिर्यक् के देखने वाला है, वह दुःख के देखने वाला है। मेधावी व्यक्ति क्रोध, मान, माया और लोभ को तथा राग-द्वेष और मोह का एवं गर्भ, जन्म, मरण, नरक, तिर्यक् और दुःख को छोड़ देता है, इनसे निवृत्त हो जाता है। यह तीर्थंकर देव का दर्शन अर्थात् सिद्धांत है जो कि शस्त्र से उपरत और संसार का अन्त करने वाले और स्वकृत कर्मों का भेदन करने वाले हैं। क्या तीर्थंकर अथवा केवली भगवान के भी कोई उपाधि हैं? उत्तर-तीर्थंकर वा केवली भगवान के कोई भी उपाधि नहीं है। इस प्रकार मैं कहता हूं।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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