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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध से मेहावी अभिणिवट्टिज्जा कोहं च माणं च मायं च लोभं च पिज्जं च दोसं च मोहं च गब्भं च जन्मं च मारं च नरयं च तिरियं च दुक्खं च। एयंपासगस्स दंसणं उवरयसत्थस्स पलियंतकरस्स, आयाणंनिसिद्धा सगडब्भि किमत्थि ओवाही पासगस्स न विज्जइ? नत्थि त्तिवेमि॥126॥
छाया-यः क्रोधदर्शी स मानदर्शी, यो मानदर्शी स मायादर्शी, यो मायादर्शी, स लोभदर्शी, यो लोभदर्शी, स प्रेमदर्शी यः प्रेमदर्शी स द्वेषदर्शी, यो द्वेषदर्शी स मोहदर्शी, यो मोहदर्शी, स गर्भदर्शी, यो गर्भदर्शी स जन्मदर्शी, यो जन्मदर्शी स मारदर्शी यो मारदर्शी स नरकदर्शी, यो नरकदर्शी स तिर्यग्दर्शी यः तिर्यग्दर्शी स दुःखदर्शी। स मेधावी अभिनिवर्तयेत् क्रोधं च मानं च मायां च लोभं च प्रेमं च द्वेषं च मोहं च गर्भ च जन्मं च मारञ्च नरकं च तिर्यञ्चं च दुःखं च। एतत् पश्यकस्य दर्शनं, उपरत शस्त्रस्य पर्यन्तकरस्य आदानं निषेध्य स्वकृतकर्मभित् किमस्ति उपाधिः? पश्यकस्य न विद्यते, नास्ति! इति ब्रवीमि।
पदार्थ-जे-जो। कोहदंसी-क्रोध के स्वरूप को देखने वाला है। से-वह। माणदंसी-मान के स्वरूप को देखने वाला है। जे-जो। माणदंसी-मान के देखने वाला है। से-वह। मायादंसी-माया के देखने वाला है। जे-जो। मायादंसी-माया को देखने वाला है। से-वह। लोभदंसी-लोभ के देखने वाला है। जे-जो। लोभदंसी-लोभ के देखने वाला है। से-वह। पिज्जदंसी-राग के देखने वाला है। जे-जो। पिज्जदंसी-राग के देखने वाला है। से-वह। दोसदंसी-द्वेष के देखने वाला है। जे-जो। दोसदंसी-द्वेष के देखने वाला है। से-वह। मोहदंसी-मोह के देखने वाला है। जे-जो। मोहदंसी-मोह देखने वाला है। से-वह। गब्मदंसी-गर्भ के देखने वाला है। जे-जो। गब्मदंसी-गर्भ के देखने वाला है। से-वह। जम्मदंसी-जन्म के देखने वाला है। जे-जो। जम्मदंसी-जन्म के देखने वाला है। से-वह। मारदंसी-मरण-मृत्यु के देखने वाला है। जे-जो। मारदंसी-मृत्यु को देखने वाला है। से-वह। नरयदंसी-नरक को देखने वाला है। जे-जो। नरयदंसीनरक को देखने वाला है। से-वह। तिरियदंसी-तिर्यक् के देखने वाला है।