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स्थान दिया गया है । परन्तु आगम - साहित्य में वैदिक शब्दों को श्रमण-संस्कृति के अनुरूप ढालने का भी पूरा प्रयत्न किया है ।
वेद-युग में वैदिक परम्परा का आराध्यदेव इन्द्र बहुत शक्तिशाली माना गया है और उसका वीरत्व दुष्टों एवं शत्रुओं का संहार करने में माना गया है और वैदिक ऋषियों ने उसकी संहारक एवं हिंसक शक्ति की स्तुति की है, गीत गाए हैं। परन्तु आचारांग में वैदिक परम्परा में प्रयुक्त इस दोष को, कालिमा को हटा दिया गया है। उसमें वीरता, महावीरता, ब्राह्मणत्व, आर्यत्व आदि शब्दों का वैदिकों की हिंसा - प्रधान परम्परा के विपरीत करुणा, दया, विश्वबन्धुत्व एवं समभावमूलक अहिंसा के अर्थ में प्रयोग किया गया है।
नवम अध्ययन में भगवान महावीर की साधना का वर्णन है । उसके चारों उद्देशों के अन्त में यह उल्लेख किया गया है कि “मतिमान ब्राह्मण ने यह आचरण किया है।” इसमें भगवान को क्षत्रिय होते हुए भी ब्राह्मण कहा गया है । परन्तु ब्राह्मणत्व के अर्थ को पूर्णतः परिष्कृत कर दिया गया है । कहां वैदिक यज्ञ-अनुष्ठान में संलग्न, हिंसा में अनुरक्त, रक्तरंजित हाथों वाला ब्राह्मण और कहां आत्म-साधना में संलग्न अहिंसा का अधिदेवता यह ब्राह्मण । दोनों की जीवन-रेखा में कहीं साम्य नहीं, मेल नहीं और दोनों की साधना में कहीं एकरूपता नहीं । इससे स्पष्ट होता है कि सूत्रकार ने वैदिक परम्परा में प्रयुक्त ब्राह्मण शब्द की विषाक्त भावना एवं कालिमा को धोकर उसके अर्थ का आध्यात्मिक विकास करके ही उसे आचारांग में स्थान दिया है ।
नायत ज्ञातपुत्र या वर्द्धमान को वीर कहा है, वीर ही नहीं, बल्कि महावीर कहा है । आज तो भगवान का महावीर नाम ही सबकी जिह्वा पर नाच रहा है, अन्य नाम तो आगमों एवं ग्रंथों में ही देखे - पढ़े जा सकते हैं । परन्तु भगवान की महावीरता किसी का संहार करने में नहीं थी । उन्होंने इन्द्र की तरह जन-संहारक युद्ध नहीं लड़े और न उन्होंने पशु-पक्षियों का वध ही किया । फिर भी वे वीर रहे हैं, वीर ही नहीं महावीर माने गए हैं। यहां वीरत्व की व्याख्या ही परिवर्तित कर दी गई है । ब्राह्मण क्रूरता को वीरत्व मानते हैं । परन्तु महावीर का वीरत्व सकषाय-चर्या (सदोष - आचरण) और अकषाय-चर्या (निर्दोष- आचरण) का परिज्ञान करके, अकषाय-चर्या को स्वीकार करने में है। इस साधना में राग-द्वेष का अभाव होने से हिंसा आदि दोषों को पनपने का थोड़ा-बहुत भी अवकाश नहीं है; क्योंकि भगवान महावीर ने दूसरों पर नहीं,