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________________ 52 अपनी आत्मा पर नियन्त्रण किया । अपने मन-वचन और काय योगों के प्रबल प्रवाह को संसार की ओर से हटाकर, आत्म-साधना की ओर मोड़ा। उन्होंने कषायों एवं राग-द्वेष पर नियंत्रण किया । अतः उनका वीरत्व महान है, निर्दोष है और ब्राह्मणों के वीरत्व की कल्पना से सर्वथा भिन्न रहा है 1 ब्राह्मण अहर्निश यज्ञ-याग की चिन्ता में डूबे रहते थे और बहुभाषी थे, जबकि भगवान महावीर 'माहणे अबहुबाई' अल्पभाषी ब्राह्मण थे । इस तरह जब वैदिक शब्दों का स्वयं भगवान महावीर के जीवन में परिवर्तित अर्थ परिलक्षित होता है, तो आचारांग जो उनकी साधना का निचोड़ हैं, मन्थन है, उसमें उसका बदला हुआ वास्तविक रूप दृष्टिगोचर होता है, तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है? आचारांग में अनेक जगह यह दोहराया गया है कि संयम - साधना वीरों का - महावीरों का मार्ग है, त्याग तप एवं संयम-निष्ठ साधकों का पथ है । वैदिक अपने आपको आर्य कहते थे । परन्तु वेद, पुराण और ब्राह्मण-ग्रन्थ में जो उनका हिंसा - प्रधान जीवन मिलता है, वह उनके अनार्यत्व का ही परिचायक है । आचारांग में भी आर्य शब्द का प्रयोग किया गया है। परन्तु इसकी व्याख्या में उज्ज्वलता, समुज्ज्वलता एवं धवलता निखर आई है। वस्तुतः आर्य वह नहीं हैं, जो रात-दिन याज्ञिक हिंसा में उलझा रहता है तथा शूद्र और नारी का तिरस्कार एवं शोषण करता है। परन्तु आर्य वह है, जिसके जीवन गवाक्ष से स्नेह, समता, मृदुता, कोमलता, अभय, अप्रमाद, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का ज्योतिर्मय प्रकाश छन-छन कर आता है और उसके साधना - पथ को प्रकाशित करता है तथा जिसके अन्तर्मन में प्राणिजगत के प्रति प्रेम एवं करुणा का झरना झरता है और जो प्रत्येक संतप्त एवं पीड़ित व्यक्ति के दुःख एवं सन्ताप को मिटाने को सन्नद्ध - तैयार रहता है। सचमुच में, आर्य संयम-निष्ठ होता है । आर्य करुणा - सागर होता है । आर्य विषय-विकारों से रहित होता है । आर्य पक्ष - पात एवं ऊंच-नीच के भेद-भाव तथा छुआ-छूत की घृणित भावना से रहित होता है । आर्य विश्व के साथ भाई-चारे का सम्बन्ध स्थापित करने वाला होता है और प्राणिजगत का संरक्षक होता है। आचारांग सूत्र में ब्राह्मण, मेधावी, वीर, बुद्ध, पण्डित, आर्य, वेदविद् आदि अनेक वैदिक शब्दों का प्रयोग किया गया है। इससे यह स्पष्ट विदित होता है कि श्रमण भगवान महावीर ने इन शब्दों के प्रयोग में व्यवहृत हिंसा, शोषण एवं उत्पीड़न
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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