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________________ 508 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध नाईयमटुं न य आगमिस्सं, अठं नियच्छन्ति तहागया उ। विहुयकप्पे एयाणुपस्सी, निज्झोसइत्ता खवगे महेसी॥12॥ छाया- अपरेण पूर्वं न स्मरन्त्येके, किमस्य अतीतं किं वागमिष्यति? भाषन्ते एके इह मानवाः, यदस्य अतीतं तदेवागमिष्यति॥ नातीतार्थमनागत रूपतया, नियच्छन्ति अर्थं तथागतास्तु। विधूतकल्पः एतदनुदर्शी, निर्दोषयिता क्षपकः महर्षिः॥ पदार्थ-अवरेण-आगामी काल और। पुट्विं-अतीत काल को। एगे-कोई एक। न सरंति-स्मरण नहीं करते, तथा। किमस्सतीयं-अतीत काल में इस जीव का क्या हुआ? वा-अथवा। किं आगमिस्सं-आगामी काल में क्या होगा तथा। एगे-कोई एक। इह-इस मनुष्य लोक में। माणवाओ-मनुष्य। भासंति-कहते हैं, कि। जमस्स-जीव का जो यह पुरुषादि वेद। तीयं-अतीत काल में था। तमागामिस्सं-वही आगामी काल में होगा। नाईय मट्ठ-अतीत काल के अर्थ को। य-पुनः । आगमिर-आगामी काल के) अळं-अर्थ को न नियच्छन्ति-नहीं चाहते-ना ही अवधारणा करते हैं, तथा। नाईयमलैं-न अतीत काल के भोगादि को। नय आगामिस्सं-और न आगामी काल के दिव्यांगनादि संग को। नियच्छन्तिचाहते हैं और न उनका स्मरण करते हैं। उ-तु पुनः कौन? तहागया-तथागतसर्वज्ञ। विहुयकप्पे-विधूत कल्प-शुद्धाचार के द्वारा कर्मों का नाश करने वाला। एयाणुपस्सी-इस प्रकार देखने वाला। महेसी-जो। महर्षि-महायोगीश्वर है, वह। निज्झोसइत्ता-पूर्वोपचित कर्मों का क्षय करने वाला या। खवगे-कर्म क्षय करता है तथा आगामी काल में कर्म क्षय करेगा। मलार्थ-कई एक व्यक्ति पूर्व और अपर काल के स्वरूप का स्मरण नहीं करते-मै पूर्व काल में क्या था और आगामी काल में क्या बनूंगा? तथा इस लोक में कई एक व्यक्ति इस प्रकार भी कहते हैं कि जो अतीत काल में था, वही आगामी काले में होगा, अतीत काल के अर्थ की और आगामी काल के अर्थ को तथागत नहीं चाहते, तथा पर्याय की विचित्रता से जो अतीत काल का अर्थ है वह आगामी काल का अर्थ नहीं हो सकता, और विधूत कल्प शुद्ध संयम के परिपालक महर्षि अतीत, अनागत और वर्तमान तीनों कालों में कर्मों का क्षय करते हैं।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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