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________________ 506 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध मूलार्थ-समता-समभाव मुनित्व का प्रधान कारण है। अतः संयमनिष्ठ मुनि समता से आत्मा को प्रसन्न करे और संयम-परिपालन में कभी भी प्रमाद न करे। इस तरह आत्मा को वश में रखने वाला वीर पुरुष सदा संयम से जीवन व्यतीत करे। जीवों के आगमन एवं गमन के स्वरूप को जान कर, रागद्वेष से आत्मा को पृथक् करता हुआ, मानवी और दैवी रूपों में वैराग्य धारण करे, फिर वह इस लोक में किसी तरह भी छेदन-भेदन को प्राप्त नहीं होता, किसी द्वारा जलाया नहीं जाता और न उसका किसी द्वारा अवहनन ही होता है। हिन्दी-विवेचन प्रस्तुत सूत्र में इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि जिस साधक के जीवन में समता-समभाव है, जो आगम के अनुरूप संयमसाधना में संलग्न है और जो इन्द्रिय एवं नो-इन्द्रिय-मन का गोपन करके अपनी आत्मा में केन्द्रित होता है-आत्म-द्रष्टा बनता है, वही मुनि है। इससे स्पष्ट है कि मुनित्व की साधना केवल वेश में नहीं, अपितु भावों के साथ अन्तवृत्ति को बदलने में है। जब तक अन्तःकरण में विषय-वासना एवं राग-द्वेष की आग प्रज्वलित है, तब तक बाहर के त्याग एवं मात्र वेष धारण का विशेष मूल्य नहीं रह जाता है; क्योंकि मुनित्व वासना, ममता एवं आसक्ति के त्याग में है, प्रत्येक परिस्थिति में समभाव एवं सहिष्णुता को बनाए रखने में है। संयम को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि इसकी साधना में स्व और पर का हित रहा हुआ है। इसमें किसी भी प्राणी को पीड़ा पहुंचाने, कष्ट देने या मन को आघात पहुंचाने के भाव नहीं रहते। संयमी पुरुष के मन में सब प्राणियों के प्रति समता का भाव रहता है। उसकी दृष्टि में विकार एवं वासना नहीं रहती। वह मन एवं इन्द्रियों को अपने वश में रखता है। इसलिए वह मनुष्य स्त्री एवं देवी के रूप-सौंदर्य को देखकर वासना के प्रवाह में नहीं बहता है। शब्दादि पांचों विषय मानव को भटकाने वाले हैं। परन्तु उनमें रूप की प्रधानता है। मानव सौंदर्य को देखकर कभी-कभी पागल हो उठता है, उस रूप को देखते हुए थकता ही नहीं। अतः शब्दादि विषयों में रूप अधिक आकर्षक है। परन्तु, इतना ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि अनर्थ का मूल राग-द्वेष हैं, आसक्ति है। यदि जीवन में राग-द्वेष या आसक्ति नहीं है, तो जीवन के साथ विषयों का सम्बन्ध होने पर भी .
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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