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________________ तृतीय अध्ययन, उद्देशक 1 साधु का जीवन संयममय है । उसका प्रत्येक समय संयम में बीतता है। वह दिन में या रात में, अकेले में या व्यक्तियों के समूह में, सुषुप्त अवस्था में या जाग्रत अवस्था में किसी भी तरह का पाप कर्म नहीं करता, किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करता एवं न झूठ, स्तेय आदि दोषों का सेवन ही करता है, इसलिए साधु को सदा-सर्वदा जाग्रत ही कहा है । जयन्ती श्राविका के प्रश्नों का उत्तर देते हुए भगवान महावीर ने अधार्मिक व्यक्तियों को सदा सुषुप्त और धर्मनिष्ठ व्यक्तियों को सदा जागरणशील कहा है और जो मनुष्य सदा पाप एवं अधर्म में संलग्न रहते हैं, उन्हें आलसी कहा है और जो सदा धर्म में, सत्कार्य में एवं आत्म-चिन्तन में संलग्न रहते हैं, उन्हें दक्ष, प्रवीण, चतुर कहा है । 'भगवद्गीता में भी इसी बात को इन शब्दों में कहा गया है कि जिसे सब लोग रात्रि समझते हैं उसमें संयमी जागता है और जब समस्त प्राणी जागते हैं तो ज्ञानवान उसे रात्रि समझता है। तात्पर्य यह है कि विषय-भोगों की आसक्ति भाव निद्रा है और उनसे विरक्ति जागरण है । अतः भोगी व्यक्ति भोगों में आसक्त होने से सदा सोए रहते हैं और त्यागी व्यक्ति उनसे निवृत्त होते हैं, इसलिए वे सदा जागते रहते हैं । हम यों भी कह सकते हैं कि अज्ञान निद्रा है और ज्ञान जागरण है । 471 अज्ञान एवं मोह के कारण ही मनुष्य भोगों में फंसता है और परिणाम स्वरूप वह अनेक दुःखों को प्राप्त करता है । और ये दुःख अहितकर हैं । इस बात को जान कर उससे दूर रहने वाला व्यक्ति ही मुनि है । इस बात को बताते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम् - लोयंसि जाण अहियाय दुक्खं, समयं लोगस्स जाणित्ता, इत्थ सत्थोवर, जस्सिमे सद्दा य रूवा य रसा य गंधा य फासा य अभिसमन्नागया भवंति ॥107॥ 1. दशवैकालिक सूत्र, अध्ययन 41 2. भगवती सूत्र, शतक 12, उद्देशक 2 3. या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी । यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥ श्री गीता, 2, 69
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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