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अध्यात्मसार:6
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धीरे-धीरे यह समझ में आने लगेगा कि मैं स्वयं ही अपना बन्धन हूँ। जब तक मैं न बदलूँगा, तब तक कहीं भी जाऊँ, बन्धन में ही रहूँगा। चाहे परिवार में रहूँ या परिवार से दूर रहूँ। चाहे धन में रहूँ या धन से दूर रहूँ। केवल बाह्य परिस्थितियाँ बदलने मात्र से व्यक्ति बन्धन से मुक्त नहीं हो सकता। ____ व्यक्ति का बन्धन है, उसका मिथ्यात्व, उसका भ्रम। अन्तर-अन्वेषण से जब यह भ्रम टूटता है तब उसे अनुभव होता है कि मैं मुक्त हूँ, तब फिर प्रतिपल मुक्ति है।