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________________ अध्यात्मसार :6 463 ये दोनों ही अयथार्थ के द्रष्टा हैं। यथार्थ का द्रष्टा किसी का भी विरोध नहीं करता है। उसकी दृष्टि में जो आता है, वह तो उसका प्रतिपादन करता है और अन्य सभी के प्रति सहिष्णुता और सम्मान का भाव रखता है। पूर्व में कथित सूत्र 103 के मूलार्थ को पुनः देखने के बाद कुछ बातें और समझनी हैं। उनमें पहली यह कि जो बन्धनों का प्रतिमोचन करता है, यानी उन बन्धनों को विशेष रूप से उघाड़ कर उन्हें पूर्णतः उघाड़ने में कुशल हो गया है, ऐसा वीर प्रशंसनीय है। ऐसा वीर कैसा होता है? उड्ढ़, अहं, तिरियं, ऊर्ध्व, अधो और तिर्यक् दिशाओं में स्थित द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का परिज्ञाता, अर्थात् सर्वज्ञ। सव्वपरिन्नाचारी, न लिप्पइ छणपएणं : फिर वह छण अर्थात् 'छद्म' आवरण, दूसरा अर्थ है छण यानी हिंसा। हिंसा मूल में क्या है? राग और द्वेष, जो उससे लिप्त नहीं होता। इस प्रकार जो आवरण से, हिंसा अर्थात राग-द्वेष से लिप्त नहीं होता। ___ प्रथम हम सूत्र को अत्मज्ञानी की दृष्टि से देखते हैं और फिर केवल-ज्ञानी की दृष्टि से देखते हैं। ____ यह सूत्र जब हम आत्म-ज्ञानी की दृष्टि से देखते हैं, तब आत्म-ज्ञानी वह है, जिसे स्वरूप का बोध हो गया है। अतः छह दिशाओं में जो सम्यक् सत्य है, उसे वह जानता है। जैसा है, वैसा जानता है। उसे हम सम्यक् दृष्टि भी कह सकते हैं। जड़ को जड़ और चेतन को चेतन जानता है। उनके सही रूप, भाव और अर्थ में जानता है। इन अर्थों में 'सत्व परिन्नाचारी' और फिर जैसा है, वैसा जानेगा तो क्या परिणाम आएगा? राग-द्वेष नहीं। __छण्णपरिन्नाचारी : जो जैसा है, वैसा जान ले। फिर राग-द्वेष नहीं होगा, क्योंकि फिर मिथ्यात्व नहीं है। हिंसा का मूल है 'राग और द्वेष' और राग-द्वेष का जनक है, मिथ्यात्व। इस प्रकार कर्म आश्रव की जड़ है मिथ्यात्व और मोक्ष का मूल है संवर। जैसे वृक्ष की जड़ सूख जाए तो फिर क्या होगा? ___ वीर कौन है? जिसने स्वरूप का बोध कर लिया, सत्य को सत्य रूप में पहचान लिया, ऐसा व्यक्ति वीर है; क्योंकि इस जगत में एक ही वीरता पूर्ण कार्य है और वह
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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