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________________ 454 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध 1. अनेकान्तवाद की दृष्टि : हमें किसी से कोई विरोध नहीं है, सभी अपने-अपने दृष्टिकोण से ठीक हैं। हमारा कोई विरोध कर भी रहा है तो हो सकता है उन्हें हमारी दृष्टि समझ में न आयी हो, और यदि समझ में आयी हो, तब भी जरूरी नहीं है कि वे हम से सहमत हों। अतः हो सकता है कि वे हमसे विरुद्ध हों। पर हमें किसी से विरोध नहीं है। मैं जो कह रहा हूँ, वह सत्य है। मैं जो कह रहा हूँ, उससे विपरीत भी सत्य हो सकता है। 2. अनुभव की दृष्टि : भरोसा रखते हुए पहले स्वयं अनुभव करके देखना। फिर आगे ठीक लगे तो स्वीकार करना। कोई भी व्यक्ति भटक नहीं सकता। अगर इन दोनों बातों को कोई भी साधक साथ में रखे। ___ एकायनो मग्गो : मार्ग तो एक ही है, किसी भी मार्ग से जाओ। अन्ततः प्रत्येक मार्ग की गुणवत्ता एक ही है। समता का मार्ग : वीतरागता का मार्ग : चाहे कोई प्रकट रूप से जिनेश्वर भगवान को माने या न माने, परन्तु यदि समता में उसकी आस्था है, वीतरागता की जीवन में आराधना करता है तो वह भगवान के मार्ग पर है। ___ जैन : जिसको जिन में, राग-द्वेष को जीतने में, समता में विश्वास हैं, वह जैन है। यदि तुम भले ही जन्म से जैन हो परन्तु तुम्हारा विश्वास क्रोध में है, भोग में है, तब फिर आप जैन कैसे हैं? रोज कार्य वैसे ही करते हो जिससे क्रोध, मान, माया, लोभ बढ़ता है, तब फिर जैन कैसे? मार्ग तो केवल एक ही हैं। वह है वीतरागता का मार्ग। विश्व में जितनी भी साधना-पद्धतियाँ हैं, वे सभी-की-सभी समता की बात करती हैं। इस प्रकार देखा जाए तो जो भी मार्ग हमें समता की ओर ले जाता है, वह जिनेश्वर भगवान का मार्ग है। लेकिन फिर भी जिन-शासन की, जिनेश्वर भगवान के मार्ग की विशेषता क्या है? यह महाविधि है, यह राजमार्ग है। अल्प समय में सहजता और सरलतापूर्वक पहुँचाने वाला मार्ग है। दूसरी विशेषता यह है कि यह अनेकान्त का मार्ग है, सभी को अपने भीतर समाविष्ट कर लेता है। सत्य का प्रतिपादन तो करो, किन्तु असत्य का निषेध किसी का विरोध मत करो। जब भी आप कोई सत्य बात कहेंगे, तब वे अपने आप करेंगे और सत्य को पहचान लेंगे। इसमें भी भव्य जीव जल्दी पहचान लेता है।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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