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________________ अध्यात्मसार: 6 453 संकता है, आपको ठीक न भी लगे, लेकिन पहले करके देखने पर ही पता लगेगा। ____ हरेक को यही कहना कि पहले आप स्वयं करके देखो। यह बात साधना के हरेक क्षेत्र में लागू होती है। फिर वह ध्यान है, अणुव्रत है, कन्दमूल या रात्रि-भोजन का त्याग। प्रत्येक अनुभव के लिए कम-से-कम छह माह आवश्यक हैं। चार से छह माह तक के समय में अनुभव आ सकता है, क्योंकि मूल मार्ग तो कषाय की उपशान्ति है। अब यह प्रत्येक व्यक्ति को अपने भीतर देखना है कि कन्द-मूल छोड़ने से मेरे कंषाय उपशान्त होते हैं या नहीं। ध्यान, स्वाध्याय अथवा किसी भी अनुभव के लिए 6 माह का समय देना। अन्धानुकरण किसी का भी हो सकता है। उसमें व्यक्ति का अपना कोई आधार नहीं होता है। ऐसा अन्धानुकरण करने वाला व्यक्ति यदि सद्गुरु के पास जाए तो तर भी सकता है और यदि कुगुरु का सान्निध्य किया, तब डूब भी सकता है। ऐसे कई लोग होंगे जो आपका भी अन्धानुकरण करेंगे। दोनों ही मार्ग सम्यक नहीं हैं और दोनों भी जरूरी हैं। भरोसा भी और अनुभव . भी। अनुभव भरोसे को पक्का करता है और भरोसा अनुभव करने के लिए तैयार करता है। इस काल में हमें दोनों को ही साथ में लेना होगा। जैसे आपके बताए हुए मार्ग पर कोई तभी चलेगा, जब पहले उसे आप पर थोड़ा भरोसा होगा। वह भरोसा अनुभव के लिए व्यक्ति को तैयार करता है। आगे तो उसको अपना अनुभव ही उसे अपने आप आगे ले जाएगा। अतः इस काल में हमें ऐसा ही समझाना होगा। केवल यही कहने से बात नहीं बनेगी कि किसी साधु ने कहा है, इसलिए तुम मान लो। ऐसा सिखाने पर और करने पर लोगों की यह वृत्ति बन जाती है कि साधुजी जो भी फरमाते हैं वैसा कर लो, तब फिर आज वे आपकी बात को मानकर चलेंगे, कल फिर कोई और आएगा और उसकी बात मानकर चलेंगे। परसों कोई और आएगा और उसकी बात को मानकर चलेंगे। इस प्रकार पहुँचना. तो कहीं नहीं होगा। बस थोड़े दिन जब तक साधुजी रहेंगे, तब तक चलेंगे। फिर भूल जाएंगे। इसलिए यह बताना जरूरी है कि हम जो बता रहे हैं, वह हमें ठीक लग रहा है। लेकिन तुम्हारे लिए वह सत्य तभी बनेगा, जब तुम भरोसा रखते हुए अनुभव करोगे और फिर अपने अनुभव से जानोगे कि यह ठीक है या नहीं, आपको यही वातावरण बनाना है।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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