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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
समझ नहीं पाए हैं। यदि कोई निंदा भी करे, तब भी हमें निन्दा नहीं करनी । हो सकता है उन्हें इसमें यह गुण दिखाई नहीं देते। उन्हें मुझमें अवगुण दिखाई दे रहे हैं। यह उनका दृष्टिकोण है। उस सम्बन्ध में हम न ही कुछ कह सकते हैं और न ही कुछ कर सकते हैं।
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अभी जो समय आ रहा है, उसमें दो प्रकार के लोग हैं - एक तो अन्धानुकरण करने वाले और दूसरे जब तक उनको अनुभव नहीं आएगा, तब तक एक कदम भी आगे बढ़ाने को तैयार न होने वाले । अब साधना के क्षेत्र में दोनों आवश्यक हैं। जैसे हमने अभी-अभी देखा कि हम नहीं देख सकते; फिर भी हम श्रद्धा करते हैं, क्योंकि हमें अनुभव हुआ है कि उनकी शरण लेने से हमें मार्ग मिला है, हमारा विकास हुआ है।
जीवन में शरण कब लेंगे? जब आप अनुभव करेंगे कि शरण लेने से मेरे जीवन में विकास हो रहा है और उस अनुभव से पहले, उस अनुभव की सम्भावना के प्रति भरोसा, अज्ञात में भरोसा जैसे किसी को ध्यान का जरा भी अनुभव नहीं है, लेकिन उसके मन में यह भरोसा है अथवा मन में थोड़ा-सा अहसास है कि कुछ मिल सकता है। इस भरोसे से ही शुरूआत होगी। यदि भरोसा नहीं हुआ, तब प्रथम तो वह आग ही नहीं । यदि आ भी गया तो काम नहीं करेगा। हालांकि वह भरोसा थोड़े समय का है। वह टूट भी सकता है और बलवान भी हो सकता है। यदि उसे जो विकास चाहिए, वह नहीं मिलता, तब भरोसा नहीं रहेगा । यदि मिलने की शुरूआत हुई, तब भरोसा उत्तरोत्तर बढ़ता जाएगा।
यहाँ साधना के मार्ग पर कदम बढ़ाने के लिए भरोसा पहले करना जरूरी है और उस भरोसे का विकास आपकी साधना एवं आपके अनुभव से होगा। उस भरोसे का आपके जीवन में प्रतिफल और परिणाम, आपकी साधना और अनुभव से
आएगा।
प्रथम अहसास होना जरूरी है । हालांकि अहसास होने मात्र से पूरा जीवन तो नहीं बदलेगा । अहसास होना पर्याप्त नहीं है ।
जब कोई व्यक्ति आपसे पूछे कि ध्यान करना आवश्यक है या नहीं। ध्यान करना चाहिए या नहीं। तब उसे कहना मैंने करके देखा और मुझे ठीक लगा, आप भी करके देखिए। अनेकान्तवाद के दृष्टिकोण से देखो मुझे ठीक लग रहा हैं। हो