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अध्यात्मसार:5
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है आयत, अर्थात् चक्खू द्रष्टा का नाम आयत् चक्खू और दृष्टि का नाम है विपस्सी।
विपस्सी : विशेष रूप से देखना। यहाँ इस दृष्टि की विशेषता क्या है? विपस्सी का अर्थ होता है कि द्रष्टा और दृश्य के बीच में केवलज्ञान का सम्बन्ध है, राग और द्वेष का नहीं। अन्यथा-पस्सती भी कह सकते थे, विपस्सी क्यों कहा? क्योंकि यहाँ पर उन्हें यह कहना है कि साधारणतः द्रष्टा और दृश्य के बीच में ज्ञान के साथ-साथ राग और द्वेष भी जुड़े हुए हैं। लेकिन यहाँ द्रष्टा और दृश्य के बीच केवलज्ञान का सम्बन्ध है।
ज्ञाता, ज्ञेय और ज्ञान : द्रष्टा, दृश्य और दृष्टि
तीनों एक भी हैं और अनेक भी हैं। एक प्रकार से वे अनेक हैं, क्योंकि द्रष्टा अलग है। द्रष्टा का गुण है दृष्टि और दृश्य अलग है और दूसरे प्रकार से तीनों एक ही हैं, क्योंकि दृष्टि द्रष्टा का ही गुण है। अतः गुण गुणी अभेदनय की अपेक्षा दोनों एक ही हैं और दृश्य द्रष्टा में ही प्रतिफलित होता है, इस अपेक्षा से द्रष्टा, दृश्य और दृष्टि तीनों एक ही हैं।
अब यह विपस्सी निम्न तीनों अवस्थाओं पर लागू होती है
1. केवलज्ञानी भी बिना राग-द्वेष के देखता है। ___ 2. आत्म-ज्ञानी बिना राग-द्वेष के देखें तब वे विपस्सी हैं; अन्यथा-जब राग-द्वेष आ जाए तब नहीं।
3. साधारण साधक जब बिना राग-द्वेष के देखता है तब विपस्सी है, अन्यथा नहीं। क्योंकि साधना तभी है, जब बिना राग-द्वेष के देखें।
राग-द्वेष भी दो प्रकार से है-पहला स्थूल रूप से, दूसरा सूक्ष्म रूप से। स्थूल रूप से जो राग-द्वेष हैं, वे हमारे ध्यान में आते हैं और सूक्ष्म रूप से होने वाले राग-द्वेष कर्मों के क्षयोपशम वश वे हमारे ध्यान में नहीं आते। केवलज्ञानी में राग और द्वेष न स्थूल रूप से हैं और न सूक्ष्म रूप से। आत्मज्ञानी में सूक्ष्म रूप से कभी हो सकता है, कभी नहीं। साधारण साधक में अधिकांश रूप से सूक्ष्म रूप से होता ही है, कभी-कभी नहीं भी हो सकता।