SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 497
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 408 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध 'कालन्ते खेयन्ने' यह सारे गुण बताए गए हैं, जो अणगार के विशेषण हैं। जो इन विशेषणों से युक्त है, उसी व्यक्ति में, आहार, गोचरी लाने की योग्यता है। गोचरी लाने का अर्थ, पात्र को भरकर ही लाना नहीं है। यह सभी साधारण भिक्षु करते हैं, लेकिन साधुत्व में यह विशेषता है कि विधिपूर्वक आहार लाना और इस प्रकार आहार वह ला सकता है जो इन विशेषणों से युक्त है। गोचरी लाने वाले की विशेषता इसी में है कि साधना के लिए किस प्रकार की गुणवत्ता से युक्त आहार की आवश्यकता है। ऐसा आहार किस प्रकार सम्यक् रूप से विधिपूर्वक मिल सकता है, तत्सम्बन्धी काल, क्षेत्र, द्रव्य और भाव का बोध । जैसे वक्ता की विशेषता क्या है कि श्रोता कहाँ पर खड़ा है यह देखना और फिर उसे धर्म का मर्म कैसे समझाया जा सकता है। तदनुसार उसे उसकी भाषा में अपना अर्थ समझाना। इसी प्रकार गोचरी लाने वाले भिक्षु की अपनी विचक्षणता होती है। इसी कारण नवदीक्षित को आप गोचरी के लिए नहीं भेजते, अभी वह सामायिक चारित्र में है। गोचरी कैसे लानी यह उसे पूर्ण रूप से पता नहीं। यह जितने भी विशेषण दिये हैं, उन विशेषणों से वह युक्त हो जाए तभी उसे पंच महाव्रत दिये जाते हैं। ये उत्कृष्ट भाव हैं। इतनी योग्यता आने में समय लगता है। अतः इस योग्यता के साधारण रूप से आने पर आप पंच महाव्रत दे सकते हैं। लेकिन पूरे गण के लिए गोचरी लाने में तो यह योग्यता आनी आवश्यक है। तद् हेतु वह बुद्धिमत्ता और विचक्षणता होनी चाहिए, जो साधना, श्रुत के अभ्यास और गुरुजनों की संगति से आती है। यदि वह विचक्षण नहीं है, तब या तो उपयुक्त गोचरी नहीं मिलेगी या वह नियम तोड़ कर गोचरी लाएगा। __अपने भीतर निरीक्षण करो कि मेरे भीतर वह योग्यता है कि नहीं। वह योग्यता क्या है और उसे कैसे अर्जित किया जा सकता है, इस हेतु जिज्ञासा और तत्परता रखें। हर समय जागरूक रहें। आगम हमारे चक्षु हैं। उन चक्षुओं का उपयोग करके स्वयं के प्रति जागरूक रहना। जिस प्रकार की साधना के लिए आहार उपयोगी है, उसी प्रकार की समझ श्रावकजनों को भी देनी। यह भी गोचरी सम्बन्धी एक विचक्षणता है। जैसे आप पीने हेतु गरम पानी का उपयोग करते हैं तब गरम पानी पीने का महत्त्व और उसका
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy