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________________ 390 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध 1. देवेन्द्र अवग्रह, 2. राजअवग्रह, 3. गृहपतिअवग्रह, 4. शय्यातर अवग्रह और 5. साधर्मिक अवग्रह। इनमें प्रथम अवग्रह को छोड़कर शेष चारों अवग्रह स्पष्ट हैं। देवेन्द्र अवग्रह ज़रा अस्पष्ट है। कुछ लोग सोचते होंगे कि देवेन्द्र की आज्ञा कैसे ली जाती है और वह आज्ञा कैसे देता होगा? भगवती सूत्र शतक 16 उद्देशक 1 में वर्णन आता है कि एक बार शक्रेन्द्र ने भगवान महावीर से कहा था कि मैं आपके साधुओं को पृथ्वी पर पड़े हुए तृण-काष्ठ आदि ग्रहण करने की आज्ञा देता हूँ। देवेन्द्रअवग्रह का यही अभिप्राय है और इस पर से ही यह परम्परा है कि जंगल आदि में जहां कोई व्यक्ति नहीं होता है, वहां तृण-कंकर आदि लेने की आवश्यकता होती है, तो शक्रेन्द्र की आज्ञा लेते हैं। 'कडासणं-कटासनं' पद में प्रयुक्त 'कट' शब्द से संस्तारक और आसन' शब्द से शय्या; मकान आदि ग्रहण किया है। अतः वस्त्र, पात्र, कम्बल, रजोहरण, शय्या-संस्तारक आदि की सदोषता-निर्दोषता का भली-भाँति परिज्ञान करे और उसमें सदोष का त्याग करके निर्दोष पदार्थों को स्वीकार करे। यह सत्य है कि जीवन-निर्वाह के लिए निर्दोष आहार आदि ग्रहण करने का आदेश दिया गया है, परन्तु इसका यह अभिप्राय नहीं है कि निर्दोष पदार्थ होने से वह चाहे जितना ग्रहण कर ले। उसमें भी मर्यादा है, परिमाण है। साधु अपने परिमाण से अधिक आहार को ग्रहण नहीं करे। इस बात को स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्-लद्धे आहारे अणगारो मायं जाणिज्जा, से जहेयं भगवया पवेइयं, लाभुत्ति न मज्जिज्जा, अलाभुत्ति न सोइज्जा, बहुपि लटुं न निहे, परिग्गहाओ अप्पाणं अवसक्किज्जा॥1॥ छाया-लब्धे आहारे अनगारः मात्रां जानीयात् तद्यथा इदं भगवता प्रवेदितं, लाभः इति न माधयेत् (मदं न विदध्यात्) अलाभः इति न शोचयेत् बहु अपि लब्ध्वा न निहेत् (न संनिधिं कुर्यात्)। परिग्रहात् आत्मानं अपष्वष्केत्। पदार्थ-लद्धे आहारे-आहार के प्राप्त होने पर। अणगारो-अनगार, मुनि। मायं जाणिज्जा-मात्रा-परिमाण को जाने। से भगवया-उस भगवान ने। जहेयं-जैसा कि। पवेइयं-प्रतिपादन किया है कि। लाभत्ति-मुझे आहार आदि का लाभ हुआ
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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