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________________ 38 आचारांङ् : एक अनुशीलन भारतीय संस्कृति क्या है? विभिन्न दिशाओं में प्रवहमान तीन स्वतन्त्र विचारधाराओं का संगम। भारत में तीन विचार-धाराएं प्रवहमान रही हैं-1. जैन, 2. बौद्ध और 3. वैदिक। तीनों विचार-परम्पराएं अपने-आप में स्वतन्त्र हैं। तीनों का अपना स्वतन्त्र एवं मौलिक चिन्तन है, स्वतन्त्र अस्तित्व है। परन्तु फिर भी हम ऐसा नहीं कह सकते कि तीनों विचार-धाराएं एक-दूसरी से पूर्णतया असंबद्ध हैं। तीनों में कुछ हद तक या किसी अपेक्षा-विशेष से विचार-साम्य भी है। दृष्टि-भेद होने पर भी एक दर्शन दूसरे दर्शन से प्रभावित भी है। एक-दूसरे में शब्दों का, भावों का, शैली का आदान-प्रदान भी होता रहा है। अतः यह कहना उपयुक्त होगा कि तीनों संस्कृतियों का संगम ही भारतीय संस्कृति है। भारतीय संस्कृति तीनों विचारधाराओं का अनुशीलन-परिशीलन ही समग्र भारतीय संस्कृति का अध्ययन है। यदि जैन विचारधारा या श्रमण-परम्परा का अध्ययन करना है, तो इसके लिए यह आवश्यक है कि बौद्ध और वैदिक विचारधारा का भी गहन अध्ययन किया जाए। जब तक तीनों धाराओं का तुलनात्मक अध्ययन नहीं करेंगे, तब तक हम उस दर्शन का या उस परम्परा का समग्र एवं निर्धम अध्ययन नहीं कर सकते। क्योंकि तीनों विचार-परम्पराओं की श्रृंखला इतनी गहरी जुड़ी हुई है कि उसे हम एक-दूसरे से पृथक् नहीं कर सकते। इसलिए प्रबुद्ध जैन-विचारकों एवं वरिष्ठ आचार्यों का यह अभिमत बुद्धि एवं न्याय-संगत है कि प्रवचनकार एवं चर्चावादी को स्व-दर्शन और पर-दर्शन का अथवा अपनी एवं अन्य धर्म की परम्पराओं का, विचारधाराओं का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए, जिससे वह अपनी संस्कृति का स्पष्ट चित्र जनता के सामने रख सके। अतः तीनों विचारधाराओं का समन्वित रूप ही भारतीय संस्कृति है। यह समन्वय की संस्कृति है, अनेकता में भी एकत्व को खोजने एवं पाने की संस्कृति है।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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