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गया है कि विवेचन में मूल पाठ के भावों के अनुरूप ही व्याख्या हो। फिर भी छद्मस्थ अवस्था के कारण भूल का हो जाना स्वाभाविक है। क्योंकि छद्मस्थ भूल का पात्र है। अतः सावधानी रखते हुए भी कहीं त्रुटि रह गई हो तो विचारशील पाठक हमें सूचित करें जिससे उस पर विचार किया जा सके और आगामी संस्करण में सुधार किया जा सके।
शिवमस्तु सर्व जगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः। दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखी भवतु लोकः॥
-मुनि आत्माराम. प्रथमाचार्य श्रमण संघ