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________________ अध्यात्मसार: 3 361 क्योंकि तृष्णा की कोई अन्त नहीं है । यह तो अनंत महासागर है । तब फिर पार कैसे होगा, किनारा कैसे आएगा? यहाँ पर यह बात अध्रुवाचारी की है, अन्य तीर्थियों की नहीं । इसे एक रूप से आप अन्य तीर्थ भी कह सकते हैं । भगवान ने तीर्थ किसे कहा? साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका जिनकी रुचि ध्रुव है, स्थैर्य में है । जो समिति - गुप्ति की साधना करते हैं या उसमें रुचि है । जिसकी रुचि ध्रुव में नहीं है, वह तीर्थ में भी नहीं है । जो संसार की वृद्धि के लिए, कामना की वृद्धि और पूर्ति के लिए, राग-द्वेष की वृद्धि और पूर्ति के लिए साधना भी करते हैं, 1 अन्य तीर्थ हैं। यहाँ पर लोग समझ नहीं पाते, भले ही व्यक्ति जिनेश्वर - देव को मानने वाला हो पर उसकी रुचि अध्रुव में है, तो वह अन्य तीर्थ है । परन्तु ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसकी रुचि सत्य में है, ध्रुव में है, वह तीर्थ में है । मूल बात रुचि किसमें है । ध्रुव या अध्रुव में है। ध्रुवाचारी साधक है । अध्रुवाचारी संसार में डूबा हुआ है । केल
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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