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________________ 360 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध रह सकता है। ऐसी अध्रुव देह की आसक्ति से संसार की शुरूआत होती है। इस प्रकार संसारी को अध्रुवाचारी कहते हैं। जिसका दृष्टिकोण अध्रुव की वृद्धि का है, जिसकी दृष्टि अध्रुव के प्रति आसक्ति की है, वह अध्रुवचारी है, संसारी है। वह अध्रुव कुछ भी हो सकता है। देह, देह से सम्बन्धित भोग-उभोग, मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा इत्यादि। ध्रुव में चलना संयम है, अध्रुव में चलना असंयम है। या तो यों भी कह सकते हैं कि संयम ध्रुव है, असंयम अध्रुव है। जो अध्रुव में आसक्त है वह सदा राग-द्वेष में उलझा रहता है। जिसकी वृत्ति ध्रुव में रहती है, वह ध्रुव में स्थित हो जाता है। जिसकी दृष्टि ध्रुव के प्रति अभिमुख है, वह विरागी है। जो ध्रुव में पूरी तरह स्थित हो जाता है, वह वीतरागी है। यहाँ पर जो सारी स्थिति बताई गयी है, वह अध्रुवाचारी की है। ___ इन्द्रियों के विषयों की पूर्ति के लिए वह साधन एकत्रित करता रहता है। व्यक्ति की यहाँ पर मूढ़ता देखिए कि वह इतने साधन इकट्ठे कर लेता है। साधन एकत्रित करने की प्रवृत्ति इतनी महत्त्वपूर्ण और प्रमुख हो जाती है कि वह शान्ति से इनका उपभोग भी नहीं कर पाता। फिर एक दिन इनमें से कोई-न-कोई बात होती है कि या तो वह धन राजा आदि ले लेता है या चोर चोरी कर लेता है या फिर. अग्नि में दग्ध हो जाता है। ___ व्यक्ति की आसक्ति इतनी बढ़ जाती है कि उस आसक्तिवश उसे तब खयाल नहीं रहता और बिना सत्य-असत्य का खयाल रखे वह धन को एकत्रित करना चाहता है। असत्य-पूर्वक जो भी धन, जो भी सामर्थ्य आएगा वह अधिक दिन तक टिक नहीं सकता। वह अपने आप नष्ट हो जाएगा और उसके नष्ट होने पर व्यक्ति परितप्त होगा। चारों अवस्थाओं में दुःख : भगवान ने ठीक कहा है, धन एकत्रित करने से पहले भी व्यक्ति दुःखी होता है। एकत्रित करते हुए भी दुःखी और एकत्रित होने पर भी दुःखी और एकत्रित हुआ धन नष्ट होने पर भी दुःखी होता है। आगे बताया है, ऐसे व्यक्ति के लिए भगवान ने कहा है-'अणोहंतरा, अतिरंगमा अपारंगमा' ये जितने भी विशेषण हैं, ये उस व्यक्ति के लिए हैं, जो अध्रुवचारी है;
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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