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________________ अध्यात्मसार: 3 353 भी जरूरी है और वह होता है अनशन के साथ किये गये आत्मनिरीक्षण से। इसलिए कई जमह आयम्बिल को उपवास से अधिक महत्व दिया गया है। देहासक्ति को तोड़ने के लिए अनशन, आयम्बिल इत्यादि बहुत ही सहायक हैं, लेकिन अनशन किस प्रकार करना है, यह देखना भी जरूरी है। अनशन में यह देखना है कि यह भूख मुझे लगी या देह को लगी। यह निरीक्षण होता है मनोगुप्ति की साधना से, अतः अनशन के साथ-साथ समिति व गुप्ति का अभ्यास भी आवश्यक है। मन का गोपन करना हो तब स्वयं का स्वयं तक आना आवश्यक है। जैसे ध्यान के द्वारा हम मनोगुप्ति को साधते हैं। तब व्यक्ति का मन स्वयं में लीन होता है और उस तल्लीनता से आत्मनिरीक्षण स्वयमेव होता है। इस प्रकार अनशन करते हुए अपने आपको देखने पर देहासक्ति टूटती है। यहाँ पर आहार त्याग से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है आत्मनिरीक्षण। केवल आहार त्याग कर दिया, इतना ही नहीं, साथ-साथ ध्यान और कायोत्सर्ग की साधना भी होनी चाहिए। मनोगुप्ति की साधना अर्थात् मूलतः ध्यान एवं कायोत्सर्ग की साधना। इस प्रकार ध्यान करते हुए देहासक्ति टूटने का अपने आप अनुभव होगा। अनशन से मनोगुप्ति में प्रगाढ़ता आती है, लेकिन बिना समिति और गुप्ति की साधना के कोई भी अनुष्ठान सफल नहीं हो सकता। चाहे वह अनशन है, भक्ति और प्रार्थना है, पूजा या प्रभु नाम स्मरण है। कुछ भी हो साथ में समिति-गुप्ति आवश्यक हैं। समिति : सम्यक् प्रकार से की गयी प्रवृत्ति ही समिति है। सम्यक् प्रकार से अर्थात् यत्नापूर्वक, विवेकपूर्वक जीवों की रक्षा करते हुए। सबकी समझ में अच्छी तरह आ सके, इसलिए हमने समस्त प्रवृत्ति को पाँच भागों में बाँट दिया है। उसे ही सम्यक् प्रकार करने को समिति कहते हैं। क्या गृहस्थ भी समिति-गुप्ति की साधना कर सकता है? गृहस्थ भी कर सकता है। जितना गुप्ति को साध सके अच्छा है, साथ में जो भी करें समितिपूर्वक करें। गुप्ति-मन-वचन-काया का गोपन करना गुप्ति है। जितना हम मन-वचन और काया को साध सकें, उतना ही संयम, बाकी असंयम । गुप्ति-निवृत्ति रूप है-'ठाणेणं मोणेणं झाणेणं।'
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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