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___8. मधुर-जो सुनने में मधुर हो।
आचारांग सूत्र में प्रयुक्त सूत्रों में थोड़े शब्दों में विस्तृत अर्थ समाविष्ट कर दिया गया और ये सूत्र भी उक्त दोषों से रहित एवं गुणों से युक्त हैं।
आचारांग का महत्त्व
यह हम पहले बात चुके हैं कि आचारांग द्वादशांगी का सार है। क्योंकि द्वादशांगी के उपदेश का उद्देश्य है-मोक्ष मार्ग को बताना और मोक्ष के लिए आचार का परिपालन करना अत्यावश्यक है। आचारांग में आचार का ही उपदेश दिया गया है, अतः यह तीर्थंकरों की वाणी का सार है। अतः साधु-जीवन के लिए इसका स्वाध्याय एवं चिन्तन-मनन करना तथा इसे आचरण में साकार रूप देना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। व्यवहार सूत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि नव दीक्षित साधु या साध्वी प्रमादवश या रोगादि के कारण आचारांग सूत्र को भूल गए हों तो उनसे पूछे कि तुम प्रमादवश भूल गये हो या रोगादि के कारण यह सूत्र तुम्हारी स्मृति में नहीं रहा? यदि साध्वी कहे कि मैं प्रमादवश भूल गई हूं तो उसे कभी भी प्रवर्तिनी या गणावच्छेदिका आदि पद प्रदान न करे। यदि वह कहे कि रोगादि के कारण यह शास्त्र मेरी स्मृति से ओझल हो गया है और अब मैं पुनः इसे याद कर लूंगी और वह अपनी की हुई प्रतिज्ञा के अनुसार पुनः याद कर ले तो उसे प्रवर्तिनी आदि पद से विभूषित किया जा सकता है। यदि वह अपनी की हुई प्रतिज्ञा के अनुसार याद न करे तो वह किसी भी पद को पाने के योग्य नहीं है । इसके आगे के पाठ में यही बात तरुण साधु के लिए कही गई है कि यदि वह प्रमादवश आचारांग सूत्र को भूल जाए तो उसे
1. निग्गंथीए णं नव डहर तरुणियाए आयारप्पकप्पे नाम अज्झयणे परिब्भटे सिया, सा य
पुच्छियव्वा ‘केणं भे कारणेणं' अज्जो! आयारप्पकप्पे नाम अज्झमणे परिभट्टे, किं आबाहेणं पमाएणं? सा य वएज्जा 'नो आबाहेणं पमाएणं' जावज्जीवाए तीसे तप्पत्तीयं नो कप्पइ पवत्तिणित्तं वा गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारित्तरवा, सा य वएज्जा 'आबाहेणं नो पमाएणं' सा य संठवेस्सामीति संठवेज्जा, एवं से कप्पइ पवत्तिणित्तं वा गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा सा य संठवेस्सामीति नो संठवेज्जा एवं से नो कप्पइ पवत्तिणित्तं वा गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।
-व्यवहार सूत्र, 4/15