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________________ 32 24. समय विरुद्ध-किसी के मान्य सिद्धान्त के विरुद्ध मत की स्थापना करना समय विरुद्ध दोष है। जैसे-वेदान्त को द्वैतवादी और जैनदर्शन को अद्वैतवादी कहना समय विरुद्ध दोष है। 25. निर्हेतुक-जिस सूत्र में युक्ति-हेतु आदि कुछ न हो, केवल शब्द मात्र हो, उसे निर्हेतुक दोष कहते हैं। ___26. अर्थापत्ति-जिस वाक्य का अर्थापत्ति से अनिष्ट अर्थ निकलता हो, उसे अर्थापत्ति दोष कहते हैं। ___27. असमास-जिस जगह समास होता हो, वहां समास नहीं करना या विपरीत समास करना असमास दोष कहलाता है। 28. उपमादोष-उपमा दोष दो प्रकार का है-1. हीनोपमा और 2. अधिकोपमा। जैसे मेरु पर्वत को सरसों, राई के दाने की उपमा देना हीनोपमा है और सरसों के दाने को मेरु बताना अधिकोपमा है और ये दोनों दोष हैं। ___29. रूपक दोष-पदार्थ के स्वरूप एवं अवयवों का विपरीत रूपक के द्वारा वर्णन करना रूपक दोष है। 30. निर्देश दोष-निर्दिष्ट पदों में एकरूपता नहीं रखना निर्देश दोष है। 31. पदार्थ दोष-पदार्थ के पर्याय को पदार्थान्तर से वर्णन करना पदार्थ दोष है। 32. सन्धि दोष-जहां पर सन्धि होती हो वहां सन्धि नहीं करना या विपरीत सन्धि करना सन्धि दोष कहलाता है। अष्ट गुण 1. निर्दोष-समस्त दोषों से रहित हो। 2. सारवत्-जो अनेक पर्यायों से युक्त हो।। 3. हेतुयुक्त-अन्वय, व्यतिरेक आदि हेतुओं से संयुक्त हो। 4. अलंकृत-उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों से विभूषित हो। 5. उपनीत-उपनय के द्वारा जिसका उपसंहार किया गया हो। 6. सोपचार-जो असभ्य कहावतों से नहीं, बल्कि सभ्य एवं शिष्ट कहावतों से युक्त हो। 7. मित-वर्णादि के नियत परिमाण से युक्त हो।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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